बुधवार, 2 अक्तूबर 2024

*नाम माहात्म्य ॥*

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*बखनां~वाणी, संपादक : वैद्य भजनदास स्वामी*
*टीकाकार~ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण~महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
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*दादू राखणहारा राखै, तिसे कौन मारै ।*
*उसे कौन डुबोवे, जिसे सांई तारै ॥*
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*नाम माहात्म्य ॥*
राम उबारिया रे, ताकौं डर नहिं कोय ।
बहु बैरी पचि पचि गया, बाल न बंका होइ ॥टेक॥
परगट तीन्यूँ लोक मैं रे, साखि कहैं सब साध ।
जिनि हरणाकुस मारियौ, ऊबार्यौ प्रहिलाद ॥
है गै नर गैंवर गुड़्या, भारत बहु बिसतारि ।
आँडा अंतरि राखिया, टीटहड़ी का चारि ॥
जहँ तहँ भीड़ भगत की माधौ, तुम बिन कोई नाहिं ।
पांचौ पांडौ राषिया, लाखा जौंहरि माहिं ॥
बाछा गऊ बिनासिया रे, नामदे पकड़्यौ धाइ ।
बाहर आयौ बीठलौ, मुई जिवाई गाइ ॥
बांध्या हाथ पाँव परि बांध्या, चौकसि किया सरीर ।
हाथी आगै राळियौ, राख्यौ दास कबीर ॥
अकबर साह बुलाइया गुर दादू कौं आप ।
ज्ञान ध्यान पूरा हुवा, रह्या नाँव परताप ॥
पावक सुनहा पारधी, फँध रोप्यौ दौंलाइ ।
म्रिग नैं मारग को नहीं, तब सुमर्यौ रामराइ ॥
फंध जल्या सुनहा टल्या, पार्धि मलै कर दूँण ।
गुण टूटौ रख्या करी, तब मारणहारा कूँण ॥
मंजारीसुत मेल्हिया रे, ऊपरि धखै अहाव ।
तिहि बासणि बषनौं कहै, ताती लगी न बाव ॥१५॥
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उबारिया रे = उबारने वाल, उद्धार करने वाला; यहाँ यह क्रिया न होकर संज्ञा है । बाल न बंका = तनिक भी हानि नहीं होती । साखि = साक्षी, गवाही ! है = हय = घोड़ा । गै = गय = हाथी । नर गैवर = हजारों हाथियों के बराबर बल वाले मनुष्य, योद्धा । गुड़्या = मर गये । भारत = महाभारत के युद्ध में । आँडा = अंडा । भीड़ = सहायक, रक्षक । लाखा = लाक्षा गृह । जौंहरि = मनुष्यों का दाह, जो स्वयं स्वेच्छा से या कभी-कभी परिस्थितियों के कारण दूसरों के द्वारा कराये जाने पर किया जाता है । बीठलौ = बिठ्ठल भगवान्; बीठू = ईंट को कहते हैं । जिसकी मूर्ति ईंट पर खड़ी है, वह बिठ्ठल भगवान् कहलाता है । चौकसि = साबुत, पूर्व जैसे कर दिये । राळियौ = डाला । सुनहा = कुत्ता । पारधी = शिकारी । रोप्यौ = स्थापित किया । दौंलाइ = चारों और, चौथी ओर । टल्या = मारा गया । दूँण = दोनों । गुण = धनुष की डोरी, धनुष । मंजारीसुत = बिल्ली के सद्यजात बच्चे । धखै = जलता रहा । अहाव = आव, जिसमें कच्चे मिट्टी के बर्तन अग्नि लगाकर पकाये जाते हैं । बाव = वायु ॥
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जिनका उद्धारकर्ता, शरण्य, रक्षक रामजी है, उनको किसी भी प्रकार का किसी का भी, कोई भी भय नहीं व्यापता है । ऐसे अनेकों भक्तों, शरणागतों के बैरी उनको नुकसान पहुँचाने का प्रयत्न करते रहे हैं किन्तु भक्तों, शरणागतों का एक बाल भी बाँका न हो सका है; उनका नुकसान होना तो बहुत दूर की बात थी ।
मैं जिन भक्तों के उदारहण आगे देने जा रहा हूँ उनके कथानक तीनों लोकों में अति प्रसिद्ध हैं और उनकी साक्षी सभी सज्जन – भक्त लोग भरते हैं । उस परमात्मा ने हिरण्यकश्यपु जैसे बलशाली राक्षस को मारकर प्रह्लाद नामक भक्तराज का उद्धार किया ।
महाभारत के विशाल और भयंकर युद्ध में जिसमें घोड़े, हाथी और हजारों सैकड़ों हाथियों के बराबर बल वाले योद्धा भी मारे गये थे उसी युद्धस्थल में भगवत्कृपा से टीटोड़ी के चार अंडे सर्वथा सुरक्षित बच गये ।
हे माधव ! भक्तों के आप ही जहाँ-तहां सहायक-रक्षक सिद्ध हुए हैं । वस्तुतः तुम्हारे अतिरिक्त और कोई भक्तों का रक्षक है ही नहीं । आपने ही लाक्षागृह के जौहर में पांचों पांडवों को सुरक्षित बाहर निकलवा दिया था । मुसलमानों ने गौ और गौवत्स का वध करके ह्त्या का अभियोग नामदेव के माथे मंड दिया ।
परिणामतः शासक ने नामदेव को कैद में डाल दिया । भगवान् ने कैद से बाहर निकल कर(नामदेव के रूप में) मरी हुई गौ और उसके वत्स को जीवित कर दिया ।
कबीर को उनके हाथ और पाँवों को बांध कर हाथी के सामने रौंद डालने के लिये पटका गया किन्तु भगवान् ने कबीर को जीवित मात्र ही नहीं रखा उनके शरीर, हाथ, पाँवों को पूर्व की भाँति कर दिया ।
गुरुमहाराज दादू को अकबर सम्राट ने फतहपुर सीकरी में बुलाया । ज्ञान, भगवन्नामजप, ध्यानादि की चर्चाएँ हुई और भगवान् के नाम प्रताप से दादूजी का प्रभाव यथारूप सुरक्षित रहा ।
पारधी ने मृग का शिकार करने के लिये एक और अग्नि लगा दी । दूसरी ओर कुत्ते को तैनात कर दिया । तीसरी ओर स्वयं हाथ में तीर कमान लेकर खड़ा हो गया तथा चौथी ओर जाल को स्थापित कर दिया । मृग जिधर भागना चाहे उधर ही उसकी मौत तैयार थी । क्योंकि पारधी ने मृग के भागने का रास्ता छोड़ा ही नहीं था । उसने रामराय का स्मरण किया ।
भगवान् ने त्तेज हवा चलाई जिससे पारधी के हाथ से तीर चल गया जो सीधे कुत्ते के जाकर लगा जिससे कुत्ता तत्काल ढेर हो गया । अग्नि की लपटे फैल गई जिससे जाल जल गया । तीर कमान हाथ में से गिरने के कारण टूट गया । पारधी निहत्था हो गया । वह मृग का शिकार न कर पाया । जिसका रक्षक भगवान् हो, उसको कौन मार सकता है ।
कुम्हारी (श्रियादे) ने कच्चे घड़े में सद्यजात बिल्ली के बच्चों को सुरक्षित रखने के लिये रख दिया किन्तु भूल से वह पात्र हाव में पकाने के लिये रखने में आ गया । हाव में प्रचण्ड अग्नि धधकने लगी किन्तु भगवन्नाम जप के प्रताप से उन बच्चों के अग्नि तो क्या गर्म हवा तक नहीं लगी ॥१५॥
(क्रमशः)

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