🌷🙏 🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 卐 *सत्यराम सा* 卐 🙏🌷
🌷🙏 *#श्री०रज्जबवाणी* 🙏🌷
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*साधु अंग का निर्मला, तामें मल न समाइ ।*
*परम गुरु प्रकट कहै, ताथैं दादू ताइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ गुरुदेव का अंग)*
================
सवैया ग्रन्थ ~ भाग ३
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
.
*समता निदान का अंग १०*
साधु के शुद्ध भये मन पंचों तो,
जाति कुजाति को बंक न कोई ।
चंदन बंक भुवंग१ न भाग ही,
चन्द्र की बंक चकोर नन जोई२ ॥
बंक बुरी नहिं ईख जलेबी की,
स्वाद के संग गई सब खोई ।
हो रज्जब बंक विचार न बोहिथ३,
जा परि प्राणी पारंगत४ होई ॥३॥
.
चन्दन की वक्रता को देखकर सर्प१ उससे दूर नहीं भागता । चन्द्र की वक्रता को चकोर नहीं देखता२ ।
.
जलेबी और ईख की वक्रता बुरी नहीं लगती, उनके मधुर स्वाद के साथ के साथ सब खोई जाती है अर्थात उस पर ध्यान ही नहीं जाता है ।
.
जिस पर चढ कर प्राणी समुद्र से पार४ होते हैं, उस जहाज३ की वक्रता का विचार भी हृदय पर नहीं आता ।
.
वैसे ही यदि साधु के पांचों इन्द्रियों और मन शुद्ध हो गये हैं तो कोई प्रकार की जाति कुजाति की वक्रता नहीं देखी जाती है ।
.
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें