शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2024

*रुपये में आसक्ति । सद्व्यवहार*

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*दादू माया का जल पीवतां, व्याधि होइ विकार ।*
*सेझे का जल निर्मला, प्राण सुखी सुध सार ॥*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*रुपये में आसक्ति । सद्व्यवहार*
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श्रीरामकृष्ण - (गिरीश से) - कामिनी और कांचन, यही संसार है । बहुतसे लोग ऐसे हैं, जो रुपये को अपनी देह के खून के बराबर समझते हैं । रुपये पर कितना भी प्यार क्यों न करो, परन्तु एक दिन वह अपने प्यार करनेवाले को सदा के लिए छोड़कर निकल जायगा ।
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"हमारे देश में खेतों पर मेड़ बाँधते हैं । मेड़ जानते हो ? जो लोग बड़े प्रयत्न से चारों ओर मेड़ बाँधते हैं, उनकी मेड़ें पानी के तेज बहाव से ढह जाती हैं, और जो लोग एक ओर घास जमा देते हैं, उनकी मेड़ें मजबूत हो जाती हैं और पानी के रुकने के कारण खूब धान पैदा होता है ।
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"जो लोग रुपये का सद्व्यवहार करते हैं - श्रीठाकुरजी और साधुओं की सेवा में, दान आदि सत्कर्मों में खर्च करते हैं, वास्तव में उन्हीं का धनोपार्जन सफल होता है । उन्हीं की खेती तैयार होती है ।
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"डाक्टर और कविराजों की चीजें मैं नहीं खा सकता । जो लोग दूसरों के शारीरिक रोग-दुःखों का व्यापार करते हैं और उसी के अर्थोपार्जन करते हैं, उनका धन मानो खून और पीब है ।"
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यह कहकर श्रीरामकृष्ण ने दो चिकित्सकों के नाम लिये ।
गिरीश - राजेन्द्र दत्त बहुत ही श्रेष्ठ मनुष्य है । किसी से एक पैसा भी नहीं लेता । वह दान भी करता है ।
(क्रमशः)

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