मंगलवार, 15 अक्तूबर 2024

*श्री रज्जबवाणी, समता निदान का अंग १०*

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*सब आया उस एक में, डाल पान फल फूल ।*
*दादू पीछे क्या रह्या, जब निज पकड़या मूल ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ निष्कर्मी पतिव्रता का अंग)*
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सवैया ग्रन्थ ~ भाग ३
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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समता निदान का अंग १०
काष्ठ रु लोह पाषाण की पावक, 
एक हि रूप रु एक सी ताती१ ।
वृक्ष अठारह भार सु बहु विधि, 
पान के पान मधुर मधु२ जाती ॥
मच्छ अनेक अनेक हि जाति के, 
जामत३ एक जु नीर संधाती४ ।
हो रज्जब राम को नाम भजे जु, 
सो आतम एक जु एक सौं राती५ ॥२॥
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काष्ठ लोह और पत्थर का अग्नि एक रूप ओर एक सा ही उष्ण१ होता है ।

अठारह भार वनस्पति के वृक्ष बहुत प्रकार के हैं किंतु किंतु सब पत्तों के स्थान पर पत्ते ही आते हैं और सब जाति के वृक्षों का शहद२ मीठा ही होता है ।

मच्छ अनेक जाति के और अनेक होते हैं किंतु एक ही जल में जन्मते३ हैं और एक ही साथ४ रहते हैं ।

ऐसे ही जो राम का नाम भजते हैं वे जीवात्मा सब एक ही हैं और एक ही प्रभु के अनुरक्त५ हैं ।
(क्रमशः)

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