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*दादू मुख की ना गहै, हिरदै की हरि लेइ ।*
*अन्तर सूधा एक सौं, तो बोल्याँ दोष न देइ ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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#नचिकेता को दिखाई पड़ने लगा। उपनिषद का ऋषि कहता है, नचिकेता में श्रद्धा का आवेश हो गया। असल में भोलापन श्रद्धा है। सरलता श्रद्धा है। नचिकेता कोई तर्क नहीं कर सकता, लेकिन तर्क की कोई जरुरत नहीं है। एक छोटे बच्चे को भी यह दिखाई पद रहा है कि इस गाय में से दूध तो निकलता नहीं है, इसे दान क्यों किया जा रहा है ?
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बाप नाराज होगा ही। क्योंकि यह बात चुभने वाली है। यह घाव को छूना है। बेटे अक्सर घाव को छू देते हैं। यह बाप को चुभने वाली बात है। यह तो बाप भी जानता है कि यह दूध नहीं देती, इसीलिए तो दान दे रहा है। अगर दूध अभी बाकी होता तो बाप ने दान दिया ही नहीं होता। बाप इतना नासमझ नहीं है, जितना नचिकेता है।
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शुद्ध आँख के लिए एक तरह की नासमझी चाहिए। समझदारी चालक हो जाती है। इसीलिए दुनिया जितनी समझदार होती जाती है, उतनी चालक होती जाती है। लोग मुझसे कहते हैं कि विश्वविद्यालयों से इतने लोग निकलते हैं पढ़-लिखकर तो दुनिया में चालाकी घटनी चाहिए, वह बढ़ रही है ! मैं कहता हूँ वह बढ़ेगी ही।
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क्योंकि समझदारी से चालाकी बढ़ती है, घटती नहीं। जब एक आदमी गणित ठीक-ठीक करने लगता है, तर्क ठीक-ठीक बिठाने लगता है, तो चालाकी बढ़ेगी, घटेगी नहीं। दुनिया जितनी सार्वभौम रूप से शिक्षित होगी, उतनी सार्वभौम रूप से चालक और कनिंग हो जाएगी। हो गई है। किसी भी व्यक्ति को शिक्षित कर दें और फिर भी वह भोला रह जाए तो समझें कि संत है। शिक्षित होते ही भोलापन खो जाता है।
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यह बाप भी जानता है; बाप होशियार है। गणित जानता है। वह जानता है कि गाय को दान ही तब देना, जब दूध समाप्त हो जाए। तो गाय के खोने से कुछ खोता भी नहीं और दान देने से कुछ मिलता है। दान दिया, यह वह परमात्मा के सामने खड़े होकर कहेगा कि हजार गौवें दान कर दीं।
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लेकिन तुम एक छोटे बच्चे को धोखा नहीं दे पा रहे हो, उस परमात्मा को धोखा दे पाओगे ? नचिकेता को लगा कि यह क्या हो रहा है ? इन जराशीर्ण गायों को देखकर उसमें आस्तिकता का उदय हुआ, भोलेपन का उदय हुआ, चालाकी का नहीं।
ओशो; कठोपनिषद
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