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*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
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*४४. रस कौ अंग ५३/५६*
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प्रांणी पीवै प्रेम जल, तज्यौ बिषै रस आंन ।
कहि जगजीवन अलख पिछांणै, रांम कहौ गुरु ग्यांन ॥५३॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जीवात्मा प्रेम रुपी जल का पान करते हैं । वे सभी विषय त्यागते हैं । वे प्रभु को पहचान कर गुरु ज्ञान से प्रभु स्मरण ही करते हैं ।
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पंच बदन३ पंद्रह नयन, शिंभू देव सरीर३ ।
कहि जगजीवन हरि भगत, पीवै अम्रित नीर ॥५४॥
(३-३. पंच बदन ...सरीर-पुराणों के अनुसार शिव(आदिनाथ) देवता के शरीर में पाँच मुख एवं पन्द्रह नेत्र होते हैं ॥५४॥)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि आदि देव शिव के पांच मुख व पन्द्रह नैत्र हैं जो प्रभु भक्त हैं वे इस प्रकार दर्शन रुपी अमृत रस का पान करते हैं ।
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चत्रभुज४ मूरति बिष्नु तन, सात्विक रूप सरीर४ ।
कहि जगजीवन हरि भगत, पीवै अम्रित नीर ॥५५॥
(४-४. चत्रभुज...सरीर-पुराणों के अनुसार सात्त्विक रूप वाले विष्णु देवता का शरीर चार भुजाओं वाला होता है ॥५५॥)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि विष्णुजी चार भुजा धारी हैं । वे सात्विक हैं । प्रभु भक्त इस प्रकार ही उनके दर्शन अमृत जल का पान करते हैं ।
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च्यार१ बदन ब्रह्मा रचे, बांणी वेद सरीर१ ।
कहि जगजीवन वहाँ गुरु दादू, पीवै अम्रित नीर ॥५६॥
(१-१. च्यार बदन...सरीर-पुराणों के अनुसार वेदों के रचियता ब्रह्मा चतुर्मुख रूप में प्रसिद्ध है ॥५६॥)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि पुराणों के अनुसार ब्रह्मा ने चार मुख से चार वेद उच्चारण किये उस ज्ञान रुपी अमृतजल का पान हमारे गुरु महाराज दादू जी ने किया ।
(क्रमशः)
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