बुधवार, 13 नवंबर 2024

*श्री रज्जबवाणी, भजन प्रताप का अंग ११*

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*फल पाका बेली तजी, छिटकाया मुख मांहि ।*
*सांई अपना कर लिया, सो फिर ऊगै नांहि ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ परिचय का अंग)*
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सवैया ग्रन्थ ~ भाग ३
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*अथ भजन प्रताप का अंग ११*
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केले को नाश भयो फल लागत,
कागज नाश भयो फल पाये ।
पाप को नाश भयो पुण्य ऊगत,
बीछिनि नाश भयो सुत जाये ॥
फूल को नाश भयो फल आवत,
रैन को नाश भयो दिन आये ।
हो तैसे ही नाश भये जन रज्जब,
जामन मरन जगतपति ध्याये१ ॥१॥
भगवद् भजन का प्रताप दिखा रहे हैं -
फल लगने पर केले को काट दिया जाता है, इससे वह नष्ट हो जाता है । कागज में लिखित कार्य पूरा हो जाना रूप फल प्राप्त होने पर कागज फाड़ दिया जाता है, इससे वह नष्ट हो जाता है ।
पुण्य उदय होने पर पाप नष्ट हो जाता है । बीछिनि की संतान उसका पेट फाड़ कर जन्मती है इससे से वो नष्ट हो जाती है ।
फल आते ही फूल नष्ट हो जाता है । दिन के आते ही रात्रि नष्ट हो जाती है ।
हे सज्जनो ! वैसे ही जगतपति प्रभु का स्मरण करने से जन्म मरण नष्ट हो जाते हैं ।
(क्रमशः)

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