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*दादू माया मगन जु हो रहे, हमसे जीव अपार ।*
*माया माहीं ले रही, डूबे काली धार ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ माया का अंग)*
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सवैया ग्रन्थ ~ भाग ३
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*पीव पहचान का अंग १२*
धरे१ ही को ज्ञान धरे ही को ध्यान,
धरे ही के गीत घरे२ घर गावै ।
धरे को विवेक धरे को विचार,
धरे ही को नाम बड़ो कै३ दिखावैं५ ॥
धरे ही की बात धरे ही की चिंत,
धरे की घात४ अनेक मिलावैं ।
धरे ही सौं लेन ही सौं देन,
हो रज्जब राम धर्यो ही बतावैं ॥१॥
प्रभु पहचान सबन्धी विचार प्रकट कर रहे हैं -
सांसारिक प्राणियों को माया१ का ही ज्ञान है । माया का ही ध्यान करते हैं और घर२ घर में माया का ही गीत गाते हैं ।
माया का ही विवेक है । माया का ही विचार करते हैं । माया के ही नाम को बड़ा कहते३ हैं और माया को ही महान बताते५ हैं ।
माया की ही बात करते हैं माया की ही चिंता करते हैं । माया की प्राप्ति के लिये अनेक युक्तियों४ का मिलान करते हैं ।
माया के संबन्ध से ही लेते हैं और माया के संबन्ध से ही देते हैं तथा माया को ही राम बताते हैं किंतु तो माया से परे ही हैं ।
(क्रमशः)
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