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*काया की संगति तजै, बैठा हरि पद मांहि ।*
*दादू निर्भय ह्वै रहै, कोई गुण व्यापै नांहि ॥*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*श्रीरामकृष्ण तथा योगावस्था । अखण्ड दर्शन ।*
श्रीरामकृष्ण (मास्टर और हीरानन्द से) - तुम लोग आत्मीय जान पड़ते हो । कोई दूसरे नहीं मालूम पड़ते ।
"सब को देख रहा हूँ, एक-एक गिलाफ के अन्दर रहकर सिर हिला रहे हैं ।
“देख रहा हूँ, जब उनसे मन का संयोग हो जाता है तब कष्ट एक ओर पड़ा रहता है ।
"इस समय केवल यही देख रहा हूँ कि अखण्ड सच्चिदानन्द ही इस त्वचा से ढका हुआ है और इसी में एक ओर यह गले का घाव पड़ा रहता है ।"
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श्रीरामकृष्ण चुप हो रहे । कुछ देर बाद फिर कहने लगे - “जड़ की सत्ता को चेतन समझ लिया जाता है और चेतन की सत्ता को जड़ । इसीलिए शरीर में रोग होने पर मनुष्य कहता है, 'मैं बीमार हूँ ।' ”
इस बात को समझाने के लिए हीरानन्द ने आग्रह किया । मास्टर कहने लगे - "गर्म पानी में हाथ के जल जाने पर लोग कहते हैं, पानी में हाथ जल गया; परन्तु बात ऐसी नहीं, वास्तव में ताप से ही हाथ जला है ।"
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हीरानन्द - (श्रीरामकृष्ण से) - आप बतलाइये, भक्त को कष्ट क्यों होता है ?
श्रीरामकृष्ण - कष्ट तो देह का है ।
श्रीरामकृष्ण शायद कुछ और कहें इसलिए दोनों प्रतीक्षा कर रहे हैं ।
श्रीरामकृष्ण – समझे ?
मास्टर धीरे धीरे हीरानन्द से कुछ कह रहे हैं ।
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मास्टर – लोक-शिक्षा के लिए । उदाहरण सामने है कि इतने कष्ट के भीतर भी मन का संयोग सोलहों आने ईश्वर से हो रहा है ।
हीरानन्द - हाँ, जैसे ईशू को सूली देना । परन्तु रहस्य की बात तो यह है कि इन्हें इतना कष्ट क्यों मिला ?
मास्टर - ये जैसा कहते हैं - माता की इच्छा । यहाँ उनकी ऐसी ही लीला हो रही है ।
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ये दोनों आपस में धीरे धीरे बातचीत कर रहे हैं । श्रीरामकृष्ण इशारा करके हीरानन्द से पूछ रहे हैं । हीरानन्द इशारा समझ नहीं सके । इसलिए श्रीरामकृष्ण फिर इशारा करके पूछ रहे हैं, 'वह क्या कहता है ?'
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हीरानन्द - ये कहते हैं कि आपकी बीमारी लोक-शिक्षा के लिए है ।
श्रीरामकृष्ण - यह बात अनुमान की ही तो है ।
(मास्टर और हीरानन्द से) "अवस्था बदल रही है । सोच रहा हूँ, सब के लिए न कहूँ कि चैतन्य हो । कलिकाल में पाप अधिक है, वह सब पाप आ जाता है ।"
मास्टर (हीरानन्द से) - समय को बिना देखे हुए ये ऐसी बात न कहेंगे । जिसके लिए चैतन्य होने का समय आया है, उसे ही कहेंगे ।
(क्रमशः)
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