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*दादू देखे वस्तु को, बासन देखे नांहि ।*
*दादू भीतर भर धर्या, सो मेरे मन मांहि ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ भेष का अंग)*
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सवैया ग्रन्थ ~ भाग ३
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*समता निदान का अंग १०*
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कौन कुलीन को देवल१ फेर्यो२ जु,
कौन कुलीन के बालद आई ।
कौन कुलीन को शंख बजायो रे,
कौन कुलीन के बेर सुखाइ ॥
कौन कुलीन के गात जनेऊ हो,
कौन कुलीन सु देखि कसाई ।
हो रज्जब राम रचैं३ नहिं जातिन,
प्रीति प्रसंग४ मिलैं है रे भाई ॥७॥
किस सुकुल वाले के लिये मंदिर१ घुमाया२ था ? जिनके लिये घुमाया था वे नाम देव छींपा थे और भीखजन तारक थे? किस सुकुल वाले के लिये बालद आई थी जिनके लिये आई थी वे कबीर तो जुलाहे थे ।
किस सुकुल वाले के लिये पांडवों के अश्वमेध यज्ञ समाप्ति पर शंख बजाया था ? जिनके लिये बजाया था वे वाल्मीकि तो सरगरा थे । किस सुकुल वाले के बेर खाये थे ? जिसके खाये थे वह शबरी तो भीलनी थी ।
किस सुकुल वाले के शरीर पर बिना हुई चांदी के तारों की जनेऊ प्रभु ने दिखाई थी ? जिसके शरीर पर दिखाई थी वे रैदास तो चमार थे । देखो, सदना कसाई कौन सुकुल था ? उसे भी भगवान ने दर्शन दिये हैं ।
हे भाई ! राम जातियों से प्रेम३ नहीं करते, वे तो हृदय की प्रीति के सम्बन्ध४ से ही मिलते हैं ।
(क्रमशः)
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