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*जीवित मृतक साधु की, वाणी का परकास ।*
&दादू मोहे रामजी, लीन भये सब दास ॥*
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*साभार ~ @Umakant Dwivedi*
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दिन की आखिरी ट्रेन अगर स्टेशन से निकल गई तो फिर कल सुबह ही अगली ट्रेन मिलने की कल्पना किए एक बूढ़ी महिला के पैर तेजी से स्टेशन की तरफ बढ़े जा रहे थे किंतु स्टेशन पहुंचते पहुंचते आखिर ट्रेन छूट ही गई तो महिला निढ़ाल होकर एक बेंच पर बैठ गई,,उनके चेहरे पर चिंता के भाव थे,,
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एक कुली ने इसे देखा और माँ से पूछा।
- माईजी, आपको कहाँ जाना था ?
- मैं अपने बेटे के पास दिल्ली जाऊंगी....
- पर आज कोई ट्रेन नहीं माई अब कल सुबह मिलेगी ।
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महिला बेबस लग रही थी तो कुली ने कहा,,,, माई अगर आपका घर दूर हो तो यहीं प्रतीक्षालय में आपके लेटने का प्रबंध कर दूं और भोजन भी आपको पहुंच जाएगा, कोई दिक्कत की बात नहीं है,,,,,,,, वैसे दिल्ली में आपका बेटा क्या काम करता है ???
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माँ ने जवाब दिया कि मेरा बेटा रेल महकमे में काम करता है।
माई आप जरा बेटे का नाम बताइए,, देखूंगा अगर संपर्क संभव होगा तो तार(प्राचीन भारत का टेलीफोनिक सिस्टम) से आपकी बात करवा दूंगा,,,,, कुली ने कहा,,,
- वह मेरा लाल है, मैं उसे लाल ही बुलाती हूं मगर उसको सब लाल बहादुर शास्त्री कहते हैं ! (माँ ने जवाब दिया)
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वृद्ध महिला के मुंह से उनके बेटे का नाम सुनकर कुली के पैरों तले जमीन खिसक गई वो आवाक रह गया,, भागकर स्टेशन मास्टर के कमरे में पहुंचा और एक ही सांस में पूरी बात कह सुनाया। स्टेशन मास्टर तुरंत हरकत में आए कुछ लोगों से आनन फानन तार से बात की और अपने मातहतों के साथ भागकर बूढ़ी महिला के पास पहुंच गए,,,,,,,,
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महिला को सादर प्रणाम कर स्टेशन मास्टर ने पूछा,,,,,, मां जी आपके बेटे ने कभी आपको बताया नहीं की वो रेल महकमे में क्या काम करते हैं ???? बताया था ना मुझे,,, बोला था कि अम्मा मैं रेलवे के दिल्ली दफ्तर में छोटा सा मुलाजिम हूं !!
मां जी,,आपकी शिक्षा व संस्कारों ने आपके बेटे को बहुत बड़ा व महान बना दिया है,, जानना नहीं चाहेंगी कि आपके बेटे जी रेल महकमे में कौन सा काम करते हैं ???
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स्टेशन मास्टर की बात सुनके महिला के चेहरे पर विस्मय के भाव थे......
मां जी,,, इस पूरे भारत में जितनी ट्रेन चलती है और जितने मेरे जैसे लाखों रेलवे के मुलाजिम हैं उन सबके वो मुखिया और अगुआ हैं,, वो भारत के माननीय रेल मंत्री हैं। स्टेशन मास्टर व वृद्ध महिला के बीच चल रहे वार्तालाप के बीच ही स्टेशन का माहौल पूरी तरह बदल चुका था,,,
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सायरन की हुंकार के साथ जिले के पुलिस कप्तान जिला कलेक्टर सहित रेलवे पुलिस बल के जवान व अधिकारी स्टेशन पर पहुंच चुके थे एंबेसडर कार भी आ चुकी थी । वृद्ध मां को सलामी देते हुए उनको पूरे सम्मान के साथ रेलवे के सुरक्षा गार्डों के सुपुर्द कर शास्त्री जी के पास दिल्ली रवाना कर दिया गया।
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बनारस के छोटे से स्टेशन पर चल रहे इस बड़े घटनाक्रम से दिल्ली दरबार में बैठा वो "छोटे कद का बड़ा आदमी" पूरी तरह अनजान था........ ऐसे थे भारत मां के सच्चे सपूत श्री लाल बहादुर शास्त्री जी
साहित्यिक पत्रिका से प्राप्त प्रेरक प्रसंग का आवर्धित संस्करण!
*नमन, वंदन और श्रद्धा सुमन*
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