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*दादू नमो नमो निरंजनं, नमस्कार गुरुदेवत: ।*
*वन्दनं सर्व साधवा, प्रणामं पारंगत: ॥*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*छप्पय-*
*अब आदिनाथ १ मत्स्येन्द्र, २ गोरख ३ चरपटनाथ ये ।*
*४ धर्मनाथ ५ बुद्धिनाथ, ६ सिद्धजु ७ कंथड़ साथ ये ॥*
*८ विंदुनाथ ९ चौरंग, १ जलंधर २ सत्य ३ कणेरी ।*
*४ भडंग ५ मींडकीपाव, ६ घूंधलीमल धर फेरी ॥*
*७ घोड़ाचोली ८ बालगुदाई, सब को नाऊं माथ ।*
*अन्त कवित सिध अष्ट हैं, प्रथम जान नव नाथ ॥३०८॥*
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आदिनाथ ✽१. मत्स्येन्द्रजी, ✽२. गोरखानाथजी, ✽३. चरपटनाथजी - ये महान् योगी भक्त हो गये हैं । इनकी कथाएँ आगे आ रही हैं ।
✽४. धर्मनाथजी का चलाया हुआ (२) धर्मनाथ पंथ है । इसका प्रधान केन्द्र कच्छ देश का थिनोर स्थान है । (३) कपिलानी पंथ का मुख्य स्थान गंगा सागर के निकट दमदमा वा गोरखवंशी है । (४) रामनाथ पंथ के प्रवर्तक संतोषनाथ हैं । इसका मुख्य स्थान गोरखपुर है । (५) लक्ष्मणनाथ या नाटेश्वर पंथ का मुख्य स्थान झेलम जिले के अंतर्गत गोरक्ष टीला स्थान है । इसके प्रवर्त्तक लक्ष्मनाथ नाथ हैं । (६) वैराग पंथ के प्रवर्तक भर्तृहरि हैं इसका मुख्य केन्द्र राताडूंगा स्थान है । यह पुष्कर क्षेत्र से ६ मील पश्चिम में है । ७. माननाथी पंथ संभवतः पावननाथ-पंथ भी कहा जाता है । इस का मुख्य स्थान जोधपुर का महा मंदिर है । (९) गंगनाथ पंथ के प्रवर्त्तक गंगानाथ माने जाते हैं । इसका प्रधान केन्द्र गुरुदासपुर जिले का जथवार स्थान है । (१०) ध्वजनाथ पंथ का प्रधान केन्द्र अम्बाला में है । इसके मुख्य प्रवर्त्तक ध्वजधारी हनुमान बताये जाते हैं ।
✽५. बुद्धिनाथजी अति बुद्धिमान् तथा महान् योगी हुए हैं । इनकी भी शाखा चली होगी ।
✽६. सिद्धजी महासिद्ध पुरुष योगीराज हो गये हैं । ये भी प्रधाननाथ थे ।
✽७. कंथड़जी भी एकनाथ शाखा के प्रवर्त्तक हैं, उस शाखा का नाम कंथड़ पंथ है ।
✽८. विन्दुनाथजी ने विन्दु को विजय करके महान् लाभ प्राप्त किया था ।
✽९. चौरंगजी, इनकी कथा आगे आ रही है । ये सब नवनाथ साधना द्वारा भगवत्-प्राप्ति के मार्ग में साथ रहे हैं ।
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आगे अष्ट सिद्धों के नाम बता रहे हैं-
❖१. जालन्धरजी, इनकी कथा आगे आ रही है ।
❖२. सत्यनाथजी, इनने किसी के माँगने से एक शब्दी(पद्य) की भिक्षा दी थी । संभवतः इसी से इनका नाम सतीनाथ भी पड़ गया था । कारण- उदार दाता को भी सती कहते हैं । जैसे सती हरिश्चन्द्र राजा भी कहलाते हैं । वे उदारता और सद् गृहस्थ थे इसी से सती कहलाये हैं ।
(२) सत्यनाथ पंथ का मुख्य स्थान भुवनेश्वर(उड़ीसा) में है । इसके प्रवर्त्तक सत्यनाथ माने जाते हैं । ये १२ पंथों में १ हैं ।
❖३. कनेरीजी प्रधान नाथ तथा योगी हो गये हैं, आप नाथ संप्रदाय में विशेष माननीय हैं ।
❖४. भडंगजी अपनी धुन में मस्त रहने वाले महान् नाथ संत हो गये हैं ।
❖५. मींडकीपावजी नाथ संप्रदाय के प्रसिद्ध नाथ योगी संत माने जाते हैं ।
❖६. धूंधलीमलजी, इनने पृथ्वी को उलट दिया था । इनकी कथा मूल छप्पय ३१५ में आगे आ रही है ।
❖७. घोड़ाचोलीजी का संबन्ध आईनाथ पंथ से भी बताया जाता है ये इसके प्रचारक होंगे ।
❖८. बालगुदाईजी नाथ संप्रदाय में माननीय योगीराज हो गये हैं । इन सब नव नाथ और अष्ट सिद्धों को मैं मस्तक नमाता हूँ । इस छप्पय कवित्त में प्रथम नव नाथों के नव नाम हैं और अंत में अष्ट सिद्धों के आठ नाम हैं । आगे अन्य नाथों के नाम बता रहे हैं- ॥३०८॥
(क्रमशः)
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