मंगलवार, 3 दिसंबर 2024

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*दादू जग दिखलावै बावरी, षोडश करै श्रृंगार ।*
*तहँ न सँवारे आपको, जहँ भीतर भरतार ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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अब्राहम लिंकन प्रेसिडेंट हुआ अमरीका का। उसका बाप तो जूता सीता था, चमार था। जब वह प्रेसिडेंट हुआ और पहले दिन वहां की सीनेट में बोलने को खड़ा हुआ, तो अनेक लोगों को उससे बड़ी पीड़ा हो गई कि एक चमार का लड़का और प्रेसिडेंट हो जाए मुल्क का ! तो एक आदमी ने खड़े होकर व्यंग्य कर दिया और कहा कि महानुभाव लिंकन, ज्यादा गुरूर में मत फूलो ! मुझे अच्छी तरह याद है कि तुम्हारे पिता जूते सिया करते थे। तो जरा इस बात का खयाल रखना, नहीं तो प्रेसिडेंट होने में भूल जाओ।
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और कोई आदमी होता तो दुखी हो जाता, क्रोध से भर जाता। शायद गुस्से में आता और उस आदमी को कोई नुकसान पहुंचाता। प्रेसिडेंट नुकसान पहुंचा सकता था। लेकिन लिंकन ने क्या कहा ? लिंकन की आंखों में आंसू आ गए और उसने कहा कि तुमने ठीक समय पर मेरे पिता की मुझे याद दिला दी। आज वे दुनिया में नहीं हैं, लेकिन फिर भी मैं यह कह सकता हूं कि मेरे पिता ने कभी किसी के गलत जूते नहीं सिए हैं, और जूते सीने में वे अदभुत कुशल थे।
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वे इतने कुशल कारीगर थे जूता सीने में कि मुझे आज भी उनका नाम याद करके गौरव का अनुभव होता है। और मैं यह भी कह देना चाहता हूं--और यह बात लिख ली जाए, लिंकन ने कहा--कि जहां तक मैं समझता हूं, मैं उतना अच्छा प्रेसिडेंट नहीं हो सकूंगा, जितने अच्छे वे चमार थे ! मैं उनके ऊपर नहीं निकल सकता हूं, उनकी कुशलता बेजोड़ थी !
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यह एक समझ की बात है, एक बहुत गहरी समझ की। जब तक दुनिया में पदों के साथ इज्जत होगी, तब तक अच्छी दुनिया पैदा नहीं हो सकती औरर् ईष्या और प्रतिस्पर्धा चलेगी। प्रतिस्पर्धा काम के कारण नहीं है, प्रतिस्पर्धा है पदों के साथ जुड़े हुए आदर के कारण। कोई आदमी बागवान नहीं होना चाहता, बागवान होने में कौन सी इज्जत मिलेगी ? राष्ट्रपति होना चाहता है। यह तब तक चलेगा, जब तक हम गरीब बागवान को भी इज्जत देना शुरू नहीं करेंगे।
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तुम्हारे घर में एक चपरासी है, बूढ़ा आदमी है। तुम उसको कोई इज्जत नहीं दोगे, उससे आदमी की तरह भी व्यवहार नहीं करोगे। लेकिन तुम्हें शायद यह खयाल न हो, पदों से आदमीयत में कोई फर्क नहीं पड़ता, पदों से कोई फर्क नहीं पड़ता। और सच तो यह है कि दुनिया में जिन बड़े-बड़े पदों की बहुत इज्जत होती है, उन बड़े-बड़े लोगों ने जितने नुकसान पहुंचाए हैं, उतने छोटे-छोटे और निरीह लोगों ने कोई नुकसान नहीं पहुंचाए।
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दुनिया की सेवा छोटे-छोटे लोगों ने की है, दुनिया का काम छोटे-छोटे लोग चलाते रहे हैं, दुनिया की जिंदगी छोटे-छोटे लोगों पर निर्भर है। और जिनको हम बड़े-बड़े लोग कहते हैं--राष्ट्रपति हैं, और प्रधानमंत्री हैं, और मंत्री हैं--इन सारे लोगों ने दुनिया को कोई अच्छी स्थिति में नहीं पहुंचाया है। इन सारे लोगों ने दुनिया को उपद्रवों में डाला है, परेशानियों में डाला है, दिक्कतों में डाला है। और जिंदगी चलाने वाले जो छोटे-छोटे लोग हैं उनका कोई आदर नहीं है, कोई सम्मान नहीं है। यह हमारी पूरी स्थिति गलत है।
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अभी तो धन की प्रतिष्ठा है, श्रम की कोई प्रतिष्ठा नहीं। एक रद्दी से रद्दी आदमी बहुत बड़ा धनवान है तो तुम उसको आदर दोगे। और एक अच्छे से अच्छा आदमी जिसके पास कोई धन नहीं है, तुम उसकी तरफ मुंह उठा कर भी नहीं देखोगे। यह तो गलत बात है, यह एकदम गलत बात है। आदर होना चाहिए अच्छे मनुष्य का, प्रेमपूर्ण मनुष्य का, सच्चे मनुष्य का।
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आदर होता है धनी का। जब कि हो सकता है धन इकट्ठा करने में उसने झूठ भी बोला हो, बेईमानी भी की हो, पाप भी किए हों, बुरा भी किया हो। लेकिन आदर उसका है जहां धन है। अच्छा समाज होगा तो वहां आदर काम का होगा, श्रम का होगा, धन का नहीं। वहां आदर उन लोगों का होगा जो नींव की बुनियाद हैं, केवल उनका ही नहीं जो भवन के शिखर हैं।
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तो ऐसे समाज की रचना के लिए और ऐसी शिक्षा के लिए जो मैंने बात कही उस पर विचार करना। तो तुम्हें दिखाई पड़ेगा कि भीतर का विकास भी हो सकता है, बाहर का भी, बिना किसी प्रतिस्पर्धा के।
ओशो

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