मंगलवार, 3 दिसंबर 2024

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*अनल पंखी आकाश को, माया मेरु उलंघ ।*
*दादू उलटे पंथ चढ, जाइ बिलंबे अंग ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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प्रश्न ~ वेदों में होमापक्षी की कथा है, यह चिड़िया आकाश में बहुत ऊंचे पर रहती है--वहीं पर अन्डे देती है, अन्डा देते ही वह गिरने लगता है। परंतु इतने ऊंचे से गिरता है कि गिरते-गिरते बीच में ही फूट जाता है। तब बच्चा गिरने लगता है गिरते-गिरते ही उसकी आंखें खुलती है और पंख निकल आते हैं आंखें खुलने से जब वह बच्चा देखता है कि गिर रहा हूं और जमीन पर गिर कर चूर-चूर हो जाऊंगा, तब वह एकदम अपनी माँ की और फिर से ऊंचे चढ़ जाता है ! इस कथा का आशय समझाने की अनुकंपा करें।
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ओशो ~ नरेंद्र यह कथा किसी पक्षी की कथा नहीं, मनुष्य की कथा है, मनुष्य के पतन, मनुष्य के बोध की कथा है। आकाश में हमारा घर है, ऊंचाइयों पर हमारा घर है ! लेकिन जन्म के साथ ही हम गिरना शुरु हो जाते हैं ! गिरने का कोई अंत नहीं है ! क्योंकि खाई अतल है--कोई तल नही है खाई का, हम गिरते जा सकते हैं और गिरते जा सकते हैं !
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ऐसी कोई सीमा नही है जहां अनुभव में आए कि बस इसके आगे गिरना और नही हो सकता और भी हो सकता है, और भी हो सकता है‌ गिरने का कोई अंत नही है ! गिरते ही गिरते किसी दिन आंखें खुलती है। गिरने की चोट से ही आंखें खुलती है। गिरने की पीड़ा से आंख खुलती है और उसी आंख के खुलने से मनुष्य को अपने घर की याद आनी शुरु होती है ! उस आंख का खुलना--दर्शन, दृष्टि ! नहीं तो हम अन्धे हैं !
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ये बाहर की आंखें खुली है इससे यह मत सोच लेना कि तुम्हारे पास आंखें है। आंख तो तब है जब तुम्हे ऊंचाई का स्मरण आ जाए। तुम कहां से आए हो, किस स्रोत से आए हो, जब उसकी प्रतीति सघन हो जाए, तब समझना आंख खुली ! उसी क्षण क्रांति शुरु हो जाती है ! उसी क्षण अदम क्राईस्ट बन जाता है। उसी क्षण हम परमात्मा से दूर जाने की बजाय उसके पास आने शुरु हो जाते हैं !
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और पंख हमारे पास है, आंख हमारे पास नहीं है। आंख हो तो हम पंखों का सम्यक उपयोग कर ले ! शक्ति हमारे पास है, दृष्टि हमारे पास नहीं है ! आंख बंद और आंख खुलने के बीच जो घटना है उसको मैं सन्यास कह रहा हूं, आंख खुले, असकी आकांक्षा सन्यास है‌। यह होमापक्षी की कथा मनुष्य की अंतर कथा है ! अंतर-व्यथा भी और इसे तुम ठीक से समझ लो तो मनुष्य का यात्रापथ समझ में आ जाए।
ओशो

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