🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*श्रद्धेय श्री @महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी, @Rgopaldas Tapsvi, बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
.
*४४. रस कौ अंग १०५/१०८*
.
पुल५ बांधै पांणी थंभै, प्रेम पिवन के काज ।
जगजीवन करि बंदगी, गगन मांहि चढ़ि गाज६ ॥१०५॥
५. पुल=बन्धा या सेतु । ६. गाज=गर्जता ।
संत जगजीवन जी कहते हैं कि जीव पीने के लिये पानी जब एकत्र करते हैं तो जल में ही खम्ब स्थापित कर सेतु निर्माण करते हैं । जो कठिन कार्य है । यदि तू प्रभु की बंदगी साधना कर ले तो पानी का जो मूल है जहां के लिये तेरे इतने प्रयत्न हैं वे सब गौण हो जायेगें और हे जीवात्मा तू उस प्रभु के सामीप्य में बैठकर उस जल मूल या कृपा मूल को ही पा लेगा जिस गगन से जल बरसता है तुझे इकट्ठा करने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी तू स्वयं उसका मालिक होगा यदि तुझपर प्रभु कृपा होगी तो ।
.
गगन गरज बिजुरी चमक, मेघ बरस धर सींचि ।
कहि जगजीवन रालि जल, बहुरि लिया हरि खींचि ॥१०६॥
संत जगजीवन जी कहते हैं कि गगन गरजते हैं बिजली चमकती है तब मेघ बरस कर धरती को सिंचित करते हैं । प्रभु ने जो आयु रुपी जल दिया था उसमें से उन्होंने बहुत सारा खींच लिया है ।
.
कहि जगजीवन कांम तजि, रांम ह्रिदा मंहि राखि ।
पांचौ पीवैं प्रेम रस, उपजै अनहद साखि ॥१०७॥
संत जगजीवन जी कहते हैं कि कामादि को छोड़कर राम स्मरण को ह्रदय में रखो । फिर पांचो ज्ञानेन्द्रियां अनहद की उपस्थिति में प्रेम रस का पान करेगी ।
.
नूर निहाली७ ऊपरै, ग्यांन गलेफ८ बनाइ ।
कहि जगजीवन गुपत रहै, मैल न लागै ताहि ॥१०८॥
७. निहाली=रजाई । ८. गलेफ=खोली, आवरण ।
संत जगजीवन जी कहते हैं कि इस जीव को निष्कलंक रखने के लिये प्रभु स्मरण रुपी रजाई पर ज्ञान की खोली चढा फिर यह सुरक्षित रहेगा इस पर कोइ विकार रुपी मैल नहीं जमेगा ।
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें