शुक्रवार, 25 अप्रैल 2025

*मात देख गात अश्रुपात*

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*राम नाम बिन जीव जे, केते मुये अकाल ।*
*मीच बिना जे मरत हैं, तातैं दादू साल ॥*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*मनहर-*
*मात देख गात अश्रुपात उरु फाटि रोई,*
*सूरत सहारी नपरत गोपीचन्द की ।*
*आकृत१ करत जल बूंद परी पीठ पर,*
*माता आई रोती नजर वा नरेन्द की ॥*
*हाय हाय करत हजूर गयो हाथ जोड़,*
*कौन चूक मात मेरी बात कहो जिन्द की ।*
*बात यह तात तेरो गात ऐसो हो तो सुन,*
*राघो कहै राम बिन देह भई गंद की ॥३१९॥*
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गोपीचन्द को उसकी माता मैणावती ग्रीष्मकाल में एक दिन शीतल१ जल से स्नान करा रही थी । उन्हीं दिनों गोपीचन्द की मृत्यु का दिन समीप आ रहा था । मैणावती को वह ज्ञात था । इसलिये उसने अपने मन में सोचा गोपीचन्द के इस सुन्दर शरीर का वियोग होने वाला ही है । यह स्मरण आते ही गोपीचन्द की आकृति के भावी वियोग से व्यथित होकर वह रोने लगी ।
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तब गोपीचन्द की पीठ पर आँसुओं की गर्म गर्म बूंदें पड़ीं । उसने स्नान करते हुए, यह जानने के लिये कि गर्म गर्म बूंदें कहाँ से पड़ीं ऊपर देखा तो अपनी माता ही रोती हुई उस राजा की दृष्टि में आई ।
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तब वह 'हाय । हाय! बड़ा दुःख है' ऐसा बोलकर तथा हाथ जोड़‌कर माता के सामने खड़ा हो गया और पूछने लगा- “माताजी ! मेरी कौन सी ऐसी भूल हुई है जिससे व्यथित होकर आप रो शही हैं । आप अति शीघ्र अपने हृदय की बात निसंकोच मुझे कहें ? क्या बात है ?”
माता मैणावती ने कहा- “पुत्र । बात तो यह है कि तेरा ऐसा सुन्दर शरीर था, यह सुनकर मुझे तथा सभी सम्बन्धियों को आगे दुःख समुद्र में डूबना पड़ेगा । कारण- भगवान् की भक्ति के बिना यह गंदी वस्तुओं से बना हुआ देह किसी काम का नहीं है अर्थात् शीघ्र ही नष्ट होने वाला है । अतः तुमको विरक्त होकर भगवद्भक्ति हो करना चाहिये ।”
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आगे की कथा जालन्धरनाथजी की कथा में आ गयी । अपनी माता के उपदेश से गोपीचन्द जालन्धरनाथजी के शिष्य हो गये और प्रायः भर्तृहरि के साथ रहते हैं । दोनों ही राजा अब तक अमर माने जाते हैं और दोनों पूर्व आश्रम में मामा भानजे थे, यह प्रसिद्ध है ॥
(क्रमशः)

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