रविवार, 31 अगस्त 2025

श्रीदादू द्वारे और मंदिर की मर्यादा

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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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५ आचार्य जैतरामजी महाराज
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श्रीदादू द्वारे और मंदिर की मर्यादा
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आचार्य के शिष्य में से जिसको योग्य समझ कर स्वयं आचार्य ही जिस शिष्य के लिये संकेत कर दें कि - इसे ही मेरे ब्रह्मलीन होने पर गद्दी पर बैठाना । तब पूर्व आचार्य के ब्रह्मलीन होने पर उसी को आचार्य बनाया जाय । आचार्य गद्दी पर विराजने पर सब दादूपंथी साधु या सेवक उसी को अपने आचार्य मान कर भेंट दंडवत आदि द्वारा समादर सत्कार करें । 
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स्थान का कार्य करने के लिये दो भंडारी(कार्यकर्ता ) पूर्वाचार्य के शिष्य मंडल से योग्य देखकर रखें जावें, जो स्थान के पूर्ण हितेषी हों और आचार्य के अनुयायी हों समाज के साधारण सदस्य उनकी इज्जत महन्त संतों के समान करें । 
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आचार्य जी के अनुपस्थिति में भंडारियों की आज्ञा और इज्जत आचार्य जी के समान करें अर्थात् आचार्य जी के प्रतिनिधि ही मानें । दोनों समय श्री दादू जी महाराज की आरती प्रात: धूपादि और सायं आरती अष्टक आदि अनेक स्तोत्रों का गायन किया जावे । 
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प्रात: श्री दादू वाणी जी की कथा के पश्‍चात् आचार्य खेजडा जी के दर्शन करने जावें । सायंकाल की आरती के पश्‍चात् नियम से दादू जी महाराज के उपदेशानुसार सब को ब्रह्म चिन्तन अवश्य करना चाहिये और प्रात: भी सांयकाल के समान ही ब्रह्म चिन्तन करना चाहिये तथा चिन्तन का अभ्यास निरंतर करने का बढाना चाहिये । 
(क्रमशः) 

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