मंगलवार, 23 सितंबर 2025

*५. पतिव्रत कौ अंग २१/२४*

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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
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*५. पतिव्रत कौ अंग २१/२४*
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विभचारिणि यौं कहत है, मेरौ पिय अति रौंन ।
सुन्दर पतिबरता कहै, तेरी जिह्वा लौंन ॥२१॥
यदि कोई व्यभिचारिणी पतिव्रता से कहे - 'मेरा पति देखने से तेरे पति से रमणीय(लुभावना) लगता है', तो पतिव्रता यही कहती है कि यदि तू अपने पति को मेरे पति की अपेक्षा रमणीय बतायगी तो मैं तेरे मुख में नमक भर दूँगी । (मुख में नमक भर कर उस को चबाने के लिये विवश करना समाज में बहुत अधिक अपमानास्पद एवं कष्टकर दण्ड माना जाता था।) ॥२१॥
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विभचारिणि कहै देखि तूं, मेरै पिय कै बाल । 
सुन्दर पतिबरता कहै, तेरै मांथै ताल ॥२२॥
यदि कोई व्यभिचारिणी स्त्री किसी पतिव्रता के सम्मुख अपने पति के बालों की प्रशंसा करने लगे तो वह पतिव्रता उस व्यभिचारिणी के शिर पर थप्पड़ मारने की धमकी देती है; क्योंकि वह अपने पति के लिये कोई तिरस्कारात्मक वचन नहीं सुन सकती ॥२२॥
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विभचारिणि कहै देखि तूं, मेरै पिय कौ गात । 
सुन्दर पतिबरता कहै, तेरी छाती लात ॥२३॥
यदि कोई कुलटा स्त्री, किसी पतिव्रता के सम्मुख, अपने पति के शारीरिक सौष्ठव की प्रशंसा करे तो वह पतिव्रता यही उत्तर देती है कि यदि तूं मेरे सामने अपने पति की व्यर्थ प्रशंसा करेगी तो मैं तेरी छाती में लात मार दूंगी ॥२३॥
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विभचारिणि कहै देखि तूं, मेरै पिय कौ द्वार । 
सुन्दर पतिबरता कहै, तेरै मुख मैं छार ॥२४॥
यदि कोई कुलटा, किसी साध्वी स्त्री को, अनेक प्रकार के प्रलोभन देकर अपने पति के घर ले जाना चाहे तब वह साध्वी स्त्री उस को अपमानित करती हुई यही कहती है -'तेरे मुख धूल पड़े ! किसी भली स्त्री से ऐसी बातें करते हुए तुझे लज्जा या सङ्कोच नहीं लगता !' ॥२४॥
(क्रमशः) 

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