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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
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*६. उपदेश चितावनी कौ अंग ५/८*
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बार बार नहिं पाइये, सुन्दर मनुषा देह ।
राम भजन सेवा सुकृत, यह सोदा करि लेह ॥५॥
अतः मेरा तुम को यही परामर्श है कि दुबारा(पुनः) अनायास न मिलने वाले इस अनमोल मनुष्य शरीर को तूं भगवद्भजन एवं परोपकार आदि सत्कर्मों में लगा कर इस का यथार्थ(सच्चा) उपयोग कर ले-इसी में तेरा हित है ॥५॥
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सुन्दर निश्चय आन तूं, तौहि कहूं करि प्यार ।
मनुष जन्म की मौज यह, होइ न बारम्बार ॥६॥
महात्मा श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - तुझ पर अतिशय स्नेह के कारण ही मैं तुम को यह हितकर सत्परामर्श दे रहा हूँ । अतः तूं स्थिरमति होकर मेरे कथन के अनुकूल ही दृढ निश्चय कर लें; क्योंकि मनुष्य जन्म का यही श्रेष्ठ लाभ है कि तूं इसे एकान्ततः रामभक्ति में लगा दे ! अरे ! ऐसा दुर्लभ शरीर बार बार नहीं मिला करता ! ॥६॥
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सुन्दर मनुषा देह मैं, सारे बंधन बाढि ।
आयौ हाथ सिला तलै, काढि सकै तौ काढि ॥७॥
इस मानव देह में, इस के अपने बहुत से अन्य(जन्म मरण परम्परा आदि) बन्धन भी आ जुटे हैं । इन सबको भी रामभक्ति के माध्यम से काट सके तो काट ले । अन्यथा अब तेरा हाथ शिला के नीचे दब गया है; तूँ बुद्धिमत्ता से काम लेकर इस बन्धन से मुक्त होने का प्रयास कर ॥७॥
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सुन्दर तूं भटकति फिर्यौ, स्वर्ग मृत्यु पाताल ।
अबकै या नर देह मैं, काढि आपनौ साल ॥८॥
रे प्राणी ! अब तक तूं अनेक योनियों में जन्म लेकर संसार में भटकता हुआ स्वर्ग नरक पाताल का चक्कर काटता रहा है । अब तूं यह मानव देह पाकर अपने उन सब कष्टों को दूर कर ले ॥८॥
(क्रमशः)

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