*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*= स्मरण का अंग - २ =*
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*राम भजन का सोच क्या, करता होइ सो होइ ।*
*दादू राम संभालिए, फिर बुझिये न कोइ ॥ ९ ॥*
टीका - राम का भजन करने वाले को क्या सोच है ? अर्थात् शरीर निर्वाह के लिए उसको चिन्ता नहीं है, क्योंकि "करता होइ सो होइ", नाम स्मरण करते हुए शरीर आदि की यथा योग्य क्रियाएँ, परमेश्वर की कृपा से उसका योगक्षेम स्वत: ही पूरा होगा । सकामी शिष्य सतगुरु से प्रश्न करता है कि हे दयालु ! प्रभु - भजन का फल क्या है ? प्रत्युत्तर में श्री सतगुरु उपदेश करते हैं कि "राम भजन का सोच क्या" ? हे मंदबुद्धि ! राम का भजन करने से क्या फल होता है ? इसकी तूं क्या चिन्ता करता है ? क्योंकि जो कुछ फल होता है, वह राम - भजन करते - करते आप ही हो जाएगा । राम - भजन को ही तूं कार्य और फल समझ । इसलिए हे जिज्ञासु ! राम - भजन का स्मरण करता हुआ किसी सांसारिक पदार्थ की चिन्ता मत कर ।
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जना: पर्युपासते ।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ॥
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*नाम चेतावनी*
*राम तुम्हारे नांव बिन, जे मुख निकसै और ।*
*तो इस अपराधी जीव को, तीन लोक कित ठौर ॥ १० ॥*
टीका - हे राम जी ! आपके नाम स्मरण के अतिरिक्त जो कदाचित् अज्ञानी जीवों के मुख से और कहिए, आप से विमुख प्रवृत्ति कराने वाला दूसरा कोई प्रसंग हो तो, ऐसे अज्ञानी जीवों को त्रिलोकी में सुख की ठौर कहाँ है ? हे जिज्ञासुओ ! तुम्हारे मुँह में राम - स्मरण के बिना अन्य तुच्छ देवी, देव, भूत, प्रेत आदि की स्तुति या कामना सहित तुच्छ मंत्रों का जाप, सांसारिक विषयों की कामना, ये सब परमात्मा से विमुख करने वाले हैं । यदि ये तुम्हारे मुँह से निकलें तो इस अपराधी जीव को तीन लोक में कहीं भी सुख का स्थान नहीं है ।
राम कह्या जो ना तिरै, ऐसी कहै जु कोइ ।
ब्रह्महत्या वाके लगे, नरका गामी होइ ।
गोहत्या गुरु दूरववै, ब्रह्महि ब्रह्म विसार ।
जगन्नाथ ऐसा नहीं महापाप संसार ॥
(क्रमशः)
(क्रमशः)
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