॥ दादूराम-सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*= स्मरण का अंग - २ =*
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*दुख दरिया संसार है, सुख का सागर राम ।*
*सुख सागर चलि जाइए, दादू तज बेकाम ॥ २९ ॥*
टीका - हे मन ! यह संसार मानो दु:ख की नदी है और राम - नाम का स्मरण ही सुख का सागर है । इसलिए व्यर्थ के कामों को छोड़कर नाम का स्मरण करो, क्योंकि नाम रूपी नौका की सहायता से संसार दरिया को पार किया जा सकता है । इसी भाव को दर्शाने के लिए प्रस्तुत संसार को दु:ख दरियाव की उपमा दी है । नाम ही रामभक्ति एवं सुख सागर अविनाशी स्वरूप और एकरस राम को प्राप्त करने का साधन है ।
भोगे रोगभयं सुखे क्षयमयं वित्तेषु राज्ञो भयम्,
दास्ये स्वामिभयं जये रिपुभयं वंशे कुयोषिद्भयम् ।
माने ग्लानिमयं गुणे खलभयं देहे कृतान्ताद् भयम्,
सर्वं नाम भयान्वितं खलु सखे ! विष्णों पदं निर्भयम् ॥
(भोग में रोग का, सुख में नाश का, धन में राज का, सेवक को स्वामी का, जीत में शत्रु का, वंश में कुलटा स्त्री का, मान में अपमान का, गुणी को दुष्टों का, शरीर को मृत्यु का भय बना रहता है, केवल भगवान् का नाम ही निर्भय करने वाला है, उसी का स्मरण करो)
निद्र्रव्यो धनचिन्तया धनपतिस्तद्रक्षणे व्याकुल:,
निस्त्रीकस्तदुपाय संगत मतिस्मास्त्रीनपत्येच्छया ।
प्राप्तापत्यपरिग्रहोऽपि सततं रोगादिभि: पीडयते,
अजीव: कस्य कंथचिदेव तदिह प्रायो भवेद् दु:खित: ॥
(निर्धन को धन की, धनी को धन - रक्षा की, स्त्रीहीन को स्त्री की, सन्तानहीन को सन्तान की, सन्तान वाले को रोगों की चिन्ता बनी रहती है । अत: इस संसार में प्रत्येक जीव दु:खी है ।)
सवैया -
रंक को नचावे अभिलाषा धन पाइबे की,
निशदिन सोच कर ऐसे ही पचत है ।
राजा ही नचावे सब भूमि ही को राज लेऊँ,
और हू नचावे जोई देहर से रचत है ॥
देवता असुर सिद्ध पन्नग सकल लोक,
कीट पशु पक्षी कहु कैसे कै बचत है ।
"सुन्दर" कहत काहू सन्त की कही न जाय,
मन के नचाये सब जगत नचत हैं ॥
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*दादू दरिया यहु संसार है, तामें राम नाम निज नाव ।*
*दादू ढील न कीजिये, यहु औसर यहु डाव ॥ ३० ॥*
टीका - यह संसार दु:खरूपी सागर है और राम नाम रूपी उत्तम नौका है । हे जिज्ञासुजनों ! नौका में बैठ कर पार होने में विलम्ब न करो अर्थात् ईश्वर भजन द्वारा संसार के आवागमन से मुक्त हो जावो, क्योंकि यह मनुष्य देह स्वर्ण अवसर है और नाम-चिन्तन सर्वोत्तम सुलभ साधन है । अब इसमें तनिक भी देर करना योग्य नहीं है ।
(क्रमशः)
(क्रमशः)
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