*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*= स्मरण का अंग - २ =
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*स्मरण नाम पारख लक्षण*
*कछु न कहावे आप को, सांई को सेवे ।*
*दादू दूजा छाड़ि सब, नाम निज लेवे ॥ ३३ ॥*
दादूजी कहते हैं - देह - वासना, शास्त्र - वासना और लोक - वासना द्वारा, जिज्ञासुजनों को अपनी प्रशंसा नहीं करानी चाहिए और निष्काम भाव से परमेश्वर का स्मरण करना चाहिए । अत: स्मरण की विधि कहते हैं, अर्थात् परमेश्वर से विमुख करने वाले सम्पूर्ण कर्मों को त्याग कर केवल भगवान् का ही नाम - स्मरण करना चाहिए ॥ ३३ ॥
दृष्टांत -
साहिब सब में बसत है, देता है दिन रैन ।
नाम हमारा लेत है, तातैं नीचे नैन ॥
एक सेठ कमाने में अति चतुर था, किन्तु दान-पुण्य कुछ भी नहीं करता था । एक दिन एक भिक्षु बालक ने उसकी हवेली के द्वार पर आकर भिक्षा माँगी तो झरोखे से सेठ की पुत्रवधू बोली - यहाँ कुछ नहीं मिलेगा, हम भी बासी खाते हैं । बालक खाली हाथ लौट गया । उसकी सास(सेठानी) ने बहू के मुँह से निकले शब्द सेठजी को जा सुनाये । सेठजी गुस्से में होकर आए और पुत्रवधू से बोले - बहू, तुमने ऐसे कैसे कहा कि हम बासी खाते हैं ? बहू बोली - पिताजी मैंने तो ऐसे कहा था कि पूर्व जन्म में जो पुण्य किया था, वही खाते हैं । अब तो कोई धर्म-पुण्य होता नहीं । पूर्व जन्म की कमाई तो बासी ही है । सेठजी बहू के कहने का आशय समझ गये और बोले - तुमको पाँच किलो भुने हुए चने रोज मिल जाया करेंगे । तुम गरीबों में बाँट दिया करो । प्रति दिन नियम से सेठजी के घर से पाँच किलो चना गरीबों को बँटने लगा ।
एक दिन पुत्रवधू ने सास से कहा - आज श्वसुरजी के लिए मैं भोजन बनाऊँगी । श्वसुर जी को आसन पर बिठा दिया । बिना नमक की चने की रोटी थाली में परोस कर चौकी पर सामने रख दी, एक कटोरी में नमक मिर्च डालकर चौकी से अलग रख दी और जल का लोटा भी दूर रख दिया । सेठजी ने ठंडी चने की रोटी का ग्रास तोड़कर नमक मिर्च लगा कर खाने लगे तो सूखा ग्रास सेठजी से निगला नहीं गया । बड़ी मुश्किल से लंबा हाथ बढ़ाकर लोटा उठाया और जल की घूँट ली, तब जाकर जान में जान आई । तभी एक दूसरे थाल में सुगन्धित चावल, रोटी, दाल, सब्जी, दही बड़े, नमकीन पापड़ आदि लाकर बहू ने सेठजी के सामने चौकी पर रखे और बोली - मैंने रसोई बहुत अच्छी बनाई है । बढिया स्वादिष्ट भोजन देखते ही सेठजी खुश होकर बोले - जब तूने इतना अच्छा भोजन बनाया था, तो मेरे सामने पहले चने की सूखी ठंडी रोटी क्यों रखी ?
पुत्रवधू ने कहा - पूज्य पिताश्री, आप चनों का दान करते हैं, नमक मिर्च भी नहीं देते तथा प्याऊ भी नहीं लगाते । अत: आगे आपको खाने के लिए केवल चने ही मिलेंगे । मैंने तो नमक - मिर्च और पानी भी रखा था । किन्तु आपको वह भी नहीं मिलेंगे । आपको आगे दु:ख न हो और थोड़ा अभ्यास अभी से ही पड़ जाय तो अच्छा रहे । इसीलिये चने की रोटी परोसी थी । जो जैसा बोएगा, वैसा ही काटेगा ।
सेठजी को सारी बात समझ में आ गई और उन्होंने कारीगरों को बुलाकर चार द्वार वाला मकान बनवाया, जिससे देने वाले चारों दिशाओं में देता रहे, किसी भी दिशा से आने वाले याचक खाली हाथ न जावे । सेठजी को लोग कहते -
चारों द्वारों देत हो, करके नीचे नैन ।
कहो कहाँ से सीखिया, ऐसी विधि को देन ॥
सेठजी नम्रतापूर्वक कहते हैं कि देने वाला तो विश्वंभर है परमेश्वर है -
ईश्वर सबको देत है, देत रहत दिन रैन ।
नाम हमारो लेत है, तातैं नीचे नैन ॥ - रहीम
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*नाम स्मरण से जीवों के संशय की निवृत्ति*
*जे चित्त चहुँटै राम सौं, सुमिरण मन लागै ।*
*दादू आत्मा जीव का, संसा सब भागै ॥ ३४ ॥*
यदि गुरुदेव की कृपा से जिज्ञासुजनों का चित्त राम - नाम स्मरण में संलग्न होकर यह विषयाकार मन, बाहर के विषयों को छोड़ हरि के स्मरण में एकाग्र वृत्ति से लग जावे, तो आत्मा व व्यष्टि - चेतन अंशभूत जीव के सम्पूर्ण संशय नष्ट हो जाते है ॥ ३४ ॥
(क्रमशः)
(क्रमशः)
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