सोमवार, 2 जुलाई 2012

= स्मरण का अँग २ =(३९-४०)

॥ दादूराम-सत्यराम ॥

*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
.
*= स्मरण का अंग - २ =*
.
*व्यर्थ जीवन*
*जतन करै नहीं जीव का, तन मन पवना फेर ।* 
*दादू महँगे मोल का, द्वै दोवटी इक सेर ॥३९॥* 
दादूजी कहते हैं - हे जिज्ञासुओ ! जो अज्ञानी जीव अपने तन, मन और सुरति को संसार की ओर से हटा कर, अपनी जीवात्मा के कल्याण के हेतु तो प्रयत्न नहीं करता है और केवल दो धोती और एक सेर अन्न के बदले में ही बहुमूल्य नर तन और श्वासों को खोता है, वह मन्दभागी है । हे जिज्ञासुजनों ! अपने जीवन को सफल बनाने का उपाय करो । अन्न-वस्त्र तो बिना उपाय भी स्वयं हरि पूर्ण कर रहे हैं और ईश्वर-विमुख प्राणी को इस मनुष्यदेह के अमूल्य श्वासों के बदले में, दो धोती और एक सेर अन्न भी कठिनता से प्राप्त हो रहा है । नादान संसारी जन, अपनी आत्मा के उपकार का तो प्रयत्न करते नहीं हैं और महँगे मोल का जो हरि भजन है, उसे केवल दो धोती और एक सेर अन्न के निमित्त ही बेच रहे हैं अर्थात् यही कीमत समझ रहे हैं । जिससे उनका जीवन व्यर्थ है ॥३९॥ 
चार हजार कतेब के, चार वचन इहि ठौर । 
रिजक खाइ मत, मुल्क तज, छाने कर, शिर और ॥ 
दृष्टान्त - एक संत ने एक प्रसादी को कहा - भाई ! तुम परमात्मा की दी हुई धोती पहनते हो, धोती सभी वस्त्रों कि उपलक्षणा है और प्रभु का दिया हुआ सेर अन्न खाते हो, तो अपने तन, मन और प्राणों को संसार से बदल कर परमात्मा का स्मरण करो । नहीं करते हो तो ...
(१) प्रभु की दी हुई जीविका अन्न - वस्त्र मत ग्रहण करो,
(२) प्रभु के देश में मत रहो,
(३) प्रभु प्राप्ति का साधन या दान गुप्त रूप से करो,
(४) प्रकट रूप में करना पड़े तो दूसरे से कराकर उसका यश उसे दिला दो । कुरान के चार हजार वचन से ये चार वचन कहे गये हैं ।
.
*सफल जीवन*
*दादू रावत राजा राम का, कदे न बिसारै नांव ।* 
*आत्मराम संभालिये, तो सुबस काया गांव ॥ ४०॥* 
हे जिज्ञासु ! जैसे राजा का कोई जागीरदार अर्थात् राव राजा होता है, वह राजा की आज्ञा व कानून का सदा ध्यान रखता है, तो उसके नगर में सदा सुख शान्ति बनी रहती है । इसी प्रकार राम तो राजा है और मनुष्य आदि सब जागीरदार है, और मनुष्य शरीर ही उनकी जागीरी है । ब्रह्मर्षि उपदेश करते हैं कि हे जिज्ञासुजनो ! रावत कहिए, जो मनुष्य राम राजा के नाम को कभी नहीं भूलेगा और अपनी आत्मा के उद्धार का ध्यान रखेगा, उसका मनुष्य जीवन सफल और धन्य है ॥ ४०॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें