*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*= स्मरण का अंग - २ =*
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*स्मरण चितावणी*
*दादू अहनिशि सदा शरीर में, हरि चिंतत दिन जाइ ।*
*प्रेम मगनलै लीन मन, अन्तरगति ल्यौ लाइ ॥ ४१ ॥*
दादूजी कहते हैं - हे जिज्ञासु ! सदा कहिए रात-दिन अन्तर्मुखवृत्ति होकर ईश्वर के भजन करने में जो दिन जाता है, वह श्रेष्ठ है । इसलिए प्रभु के प्रेम में मग्न होकर अपने मन को ईश्वर के भजन में सदा लगाओ ॥ ४१ ॥
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*निमिष एक न्यारा नहीं, तन मन मंझि समाइ ।*
*एक अंगि लागा रहै, ताको काल न खाइ ॥ ४२ ॥*
हे जिज्ञासुओ ! पल भर भी परमेश्वर को मत भूलो और तन - मन को आत्मा के सन्मुख बनाकर, जो "अंगि" परमेश्वर है, उसमें लगा कर रहो । हे मुमुक्षओ ! इस प्रकार करने से आत्म-भाव प्राप्त होंगे ॥ ४२ ॥
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*दादू पिंजर पिंड शरीर का, सुवटा सहज समाइ ।*
*रमता सेती रमि रहै, विमल विमल जस गाइ ॥ ४३ ॥*
हे जिज्ञासुओ ! स्थूल शरीर रूपी पिंजरे में जीव रूपी सूवा सहज निष्काम भाव से समाकर परमेश्वर में एक रूप हो रहा है और आत्मानन्द में प्रफुल्लित होकर प्रभु के परम पवित्र यश का गायन करता है ॥ ४३ ॥
(क्रमशः)
(क्रमशः)
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