शनिवार, 21 जुलाई 2012

= स्मरण का अँग २ =(८४/५)

॥ दादूराम-सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= स्मरण का अंग - २ =*
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*स्मरण नाम अगाधता*
*कौण पटंतर दीजिये, दूजा नाहीं कोइ ।*
*राम सरीखा राम है, सुमिर्‍यां ही सुख होइ ॥८४॥* 
दादूजी कहते हैं - हे जिज्ञासुओं ! राम नाम की महिमा प्रकट करने के लिए किसकी उपमा देवें, क्योंकि राम के सिवाय ऐसा तत्वस्वरूप और दूसरा कोई भी नहीं है । राम के नाम के समान तो स्वयं राम ही है और दूसरा कोई है ही नहीं । इसलिए उसके स्मरण मात्र से ही आत्मानन्द की प्राप्ति होती है । क्योंकि जो पुरुष राम की अनन्य शरण होकर राम का भजन करते हैं, उनको किस की उपमा देवें ! क्योंकि ऐसे भक्त के समान तो कोई दूसरा है ही नहीं । राम के भक्त तो राम के समान राम रूप ही हैं ॥८४॥ 
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*अपणी जाणै आप गति, और न जाणै कोइ ।* 
*सुमरि सुमरि रस पीजिये, दादू आनन्द होइ ॥८५॥* 
हे जिज्ञासुओं ! राम और राम के भक्त अपनी महिमा को आप ही जानते हैं अर्थात् राम भक्तों की महिमा जानते हैं और भक्त राम की महिमा जानते हैं । दूसरा कहिए, बहिर्मुख सांसारिक प्राणी कोई भी नहीं जानते । इसलिए हे मुमुक्षजनों ! अनन्य भक्त की भाँति आप भी राम-नाम का स्मरण करके रामरस रूपी अमृत का पान करो । इसी से आत्मस्वरूप आनन्द की प्राप्ति होवेगी ॥८५॥
(क्रमशः)

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