शनिवार, 25 अगस्त 2012

= विरह का अँग ३ =(३४-६)

॥ दादूराम-सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= विरह का अंग - ३ =* 
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*दादू दर्शन की रली, हम को बहुत अपार ।*
*क्या जाणूं कबही मिले, मेरा प्राण आधार ॥४६॥* 
सतगुरु देव कहते हैं कि हमें आपके दर्शनों की "रली" नाम, भारी इच्छा लगी हुई है । हे मेरे प्राणाधार ! न मालूम, हमें आपका कब दर्शन होगा ? आपके वियोग में अत्यन्त व्याकुल हैं । आपसे हम कब मिलेंगे ॥४६॥ 
कागा सब तन खाइयो, चुनि चुनि खाइयो मांस । 
दो नैना मत खाइयो, मोहि पिया मिलन की आस ॥ 
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*दादू कारण कंत के, खरा दुखी बेहाल ।*
*मीरां मेरा महर कर, दे दर्शन दरहाल ॥४७॥*
श्री दयालु महाप्रभु भगवत् के प्रति विलाप करते हैं कि मैं विरहिनी, अपने पति परमेश्वर के दर्शनों के लिये, अत्यन्त व्याकुल हो रही हूँ । हे हमारे "मीरां" नाम, प्यारे परमेश्वर ! हम पर दया करो और इस मनुष्य देह में ही अपना दर्शन देकर "दरहाल" कहिए, कृतार्थ करो ॥४७॥ 
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*ताला बेली प्यास बिन, क्यों रस पीया जाइ ।*
*विरहा दर्शन दर्द सौं, हमको देहु खुदाइ ॥४८॥* 
हे जिज्ञासुओं ! "ताला" = तलप और "बेली" = विलाप के सहित अत्यन्त मिलने की इच्छा, इन साधनों के बिना प्रभु का प्रेम-भक्ति रूप रस कैसे पीया जावे ? हे स्वामिन ! आप अपने विरहीजन भक्तों को आप स्वयं कृपा करके पूर्वोक्त साधन सम्पन्न बनाइये । हे खुद खामिंद कहिए, हमारे मालिक, आप स्वयं प्रकट होइये ॥४८॥
(क्रमशः)

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