॥ दादूराम-सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
.
*= विरह का अंग - ३ =*
.
*विरहा मेरा मीत है, विरहा बैरी नांहि ।*
*विरहा को बैरी कहै, सो दादू किस मांहि ॥१५१॥*
टीका - हे जिज्ञासुओं ! समस्त संसार में हमारा केवल विरह ही एक मात्र मित्र है । यद्यपि व्यवहार में विरह-संताप आदि नाना कष्ट देता दिखता है, तथापि वह हमारा वैरी नहीं है, अर्थात् शत्रु नहीं है । कदाचित् कोई विरह को शत्रु कहे, तो वह विरहीजनों की गणना में नहीं गिना जाता है और वह विरही भक्त ही क्या है ? जो विरह को वैरी कहता है ॥१५१॥
विरह सरीखा मीत को, जो हरि पठावैं आप ।
जगन्नाथ जड़ जीव को, चेतन करै मिलाप ॥
.
*दादू इश्क अलह की जाति है, इश्क अलह का अंग ।*
*इश्क अलह वजूद है, इश्क अलह का रंग ॥१५२॥*
टीका - हे अकबर, अल्लह नाम खुदा की जाति प्रेम ही है । खुदा के अवयव प्रेम स्वरूप ही हैं । खुदा का वजूद कहिए शरीर, प्रेममयी ही है और खुदा का रंग केवल प्रेम ही है ॥१५२॥
प्रसंग :- सतगुरु भगवान से अकबर बादशाह ने चार प्रश्न सीकरी में किए थे :- हे गुरुदेव ! उस खुदा की जाति क्या है ? और खुदा का अंग कहिए, अवयव कैसे हैं ? खुदा का शरीर किस प्रकार का है ? खुदा का रंग कैसा है ? दादू दयाल महाप्रभु ने इन प्रश्नों का उत्तर इसी साखी से दिया है । अकबर ने यह सुनकर, मन में निश्चय किया कि सतगुरु देव ने वास्तविक यर्थाथ उत्तर दिया है ।
गुरु दादू से बादशाह, बूझी चार जो बात ।
जाति अंग औजूद रंग, साहिब के विख्यात ॥
"कौन अलह की जाति है, क्या है अलह का अंग?
कैसा अलह औजूद है, कैसा अलह का रंग ?"
.
*साध महिमा महात्म*
*दादू प्रीतम के पग परसिये, मुझ देखण का चाव ।*
*तहाँ ले सीस नवाइये, जहाँ धरे थे पाँव ॥१५३॥*
टीका - हे जिज्ञासुओं ! प्रीतम प्यारे तेजोमय परमेश्वर के तेज पुँज के चरणों का स्पर्श करो, क्योंकि हम विरहीजनों को परमेश्वर के दर्शनों का अति चाव लगा है । इसलिए हे विरहीजनों ! जहाँ अन्त:करण में परमेश्वर ने अपने चरण रखे हैं, वहाँ पर परमेश्वर की शरण लेकर अपना मानसिक सिर नवाइये अथवा विरह - भाव ही मानो भगवान् के चरण हैं, उनको अखण्ड वृत्ति(बुद्धि) में धारण करिये । परमेश्वर की कृपा से जब विरह भाव का उदय हो, उसी समय से परमेश्वर के अन्त: करण की वृत्ति को कहिए, बुद्धि को स्थिर करिये । प्रीतम प्यारे जो विरहीजन सतगुरु हैं, उनके चरणों का स्पर्श करिये अर्थात् सतगुरु के चरण-स्पर्श का, परमेश्वर के दर्शनों का, जो अपूर्व फल है, उसको देखने का हमें अत्यन्त चाव है । जहाँ जहाँ उन विरहीजनों ने अपने चरण रखे हैं, तहाँ - तहाँ ही जाकर उनके चरणचिन्हों पर अपना मस्तक झुकाइये । इस प्रकार नमस्कार करने से जीव के जन्म - जन्मान्तरों के पाप - ताप नष्ट हो जाते हैं ॥१५३॥
शिव मग जात निवात शिर, देख उभै सु स्थान ।
त्यों गुरु दादू कांकरिया, नमत सदा सनमान ॥
द्रष्टान्त - भगवान् शंकर एक समय पार्वतीजी के साथ मार्ग - मार्ग जा रहे थे । एक ऐसी जगह आई, कि महाराज शंकरजी वहाँ बारम्बार सास्टांग प्रणाम करने लगे । वहाँ की धूलि को अपनी जटाओं एवं शरीर पर रमाने लगे और अनेक बार स्तुति करने लगे । भवानी ने देखा, कोई दिखाई तो नहीं देता है ? भगवान् शंकर किसको नमस्कार करते हैं ? कुछ देर में फिर पार्वती के साथ चल पड़े । दुबारा फिर एक वैसा ही स्थान आया । पूर्वोक्त प्रकार से वैसे ही करने लगे । तब गिरिजा ने हाथ जोड़कर शंकर भगवान् से प्रश्न किया कि हे नाथ ! कोई दिखाई नहीं पड़ रहा है । आप किसको नमस्कार करते हो ? पीछे भी आपने इसी प्रकार नमस्कार किया था । आप कृपा कर बतलाइये । शंकर बोले :- हे भवानी ! जहाँ हमने पहले नमस्कार किया था, वहाँ दस हजार वर्ष पहले एक विरही भक्त हुए थे । उन्होंने पमेश्वर को प्रकट किया था । इससे वह भूमि अत्यन्त पवित्र थी । इसलिए मैंने, उसको नमस्कार किया और अब यहाँ पर दस हजार वर्ष के बाद एक विरहीजन भक्त उत्पन्न होंगे, उस महात्मा का यह पृथ्वी ध्यान करती है कि कब वह महापुरुष आएंगे और मुझ पर चरण रखेंगे । उस महापुरुष का यह पृथ्वी भजन करती है, सो यह पवित्र हो चुकी है । पहले वाली पृथ्वी और इस पृथ्वी का एक ही फल है । इसलिए मैं इसको नमस्कार करता हूँ कि हे माता ! तू भक्त और भगवान का ध्यान करके पवित्र हो गई है, तुझे बारम्बार मेरा नमस्कार है । यह सुनकर पार्वती के भी भक्त और भगवान् की भक्ति का भारी रंग लग गया ।
दूसरा ब्रह्मर्षि दादू दयाल महाराज ने और उनके सदगुरु वृद्धरूप भगवान् ने अहमदाबाद में कांकरिया तालाब पर अपने चरण रखे थे और बच्चों से ध्यान कराया था । यह पृथ्वी भी अत्यन्त पवित्र है । भंडारी सनमानदास जी कहते थे कि मैं उस पृथ्वी को बारम्बार नमस्कार करता हूँ, जहाँ ब्रह्मर्षि ने अपने चरण रखे थे ।
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें