*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*= निष्कर्म पतिव्रता का अंग ८ =*
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*दादू एक सगा संसार में, जिन हम सिरजे सोइ ।*
*मनसा वाचा कर्मणा, और न दूजा कोइ ॥१६॥*
टीका - हे जिज्ञासुओं ! जिस परमेश्वर ने हमको पैदा किया है, वही दयालु परमेश्वर हमारा इस संसार में परम हितैषी है । इसलिए मन, वचन और कर्म(काया) से हम उसी एक परमेश्वर में लय लगावें । हमें मायिक पदार्थों का कोई भरोसा नहीं है । इसलिए स्वयं निष्काम होकर निष्कर्म परमेश्वर का ही नाम - स्मरण करिये ॥१६॥
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*स्मरण नाम नि:संशय*
*सांई सन्मुख जीवतां, मरतां सन्मुख होइ ।*
*दादू जीवन मरण का, सोच करै जनि कोइ ॥१७॥*
टीका - हे जिज्ञासुओं ! जिन निष्कर्म भक्तों के एक राम का ही पतिव्रत है, उनका जीवन और मरण केवल राम के ही आसरे है और राम का स्मरण करते हुए भक्तजनों को स्थूल संघात के संयोग - वियोग से कोई हर्ष - शोक नहीं होता है ॥१७॥
जीया जोलौं, हरि भज्या, राम रिझाया अैन ।
मूवां तो मंगल भया, हरि मारग में चैन ॥
जीवैं तो हरिगुण गाइ हैं, मरैं तो मिलि हैं तोहि ।
दोन्यू बातां रामजी, सुख उपजत है मोहि ॥
बहुत जीने का हर्ष न होइ, बेग मरण का भय नहीं कोइ ।
जगन्नाथ संशय बिन स्मरण, करता करै सु होइ ॥
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*पतिव्रत
*साहिब मिल्या तो सब मिले, भेंटे भेंटा होइ ।*
*साहिब रह्या तो सब रहे, नहीं तो नाहीं कोइ ॥१८॥*
टीका - हे जिज्ञासुओं ! अपना स्वामी परमेश्वर मिले तो सम्पूर्ण सम्पत्ति प्राप्त होती है और परमेश्वर के मिलने से ही सबसे मिलाप हो जाता है । ऐसा होने से ही मनुष्य - जन्म की सफलता है । एक परमेश्वर का ही पतिव्रत रहे, तो सर्व साधन स्वतः सिद्ध हो जाते हैं अन्यथा परमेश्वर के पतिव्रत बिना नाना प्रयत्न - पूर्वक साधन करना भी व्यर्थ है ॥१८॥
(क्रमशः)
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