शनिवार, 19 जनवरी 2013

= लै का अंग =(७/२२-२४)

॥दादूराम सत्यराम॥

*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*सुरति अपूठी फेरि कर, आत्म मांही आन ।*
*लाग रहै गुरुदेव सौं, दादू सोई सयान ॥२२॥* 
टीका - हे जिज्ञासुओं ! वही पुरुष सुबुद्धिमान् है, जो अपनी सुरति को बहिर्मुख से अन्तर्मुख लाकर आत्म - सन्मुख होते हैं और सर्व जगत के गुरु, गर्भवास में उपदेश करने वाले परमात्मा, के स्वरूप में अखंड लयलीन रहते हैं ॥२२॥ 
मत्तगयन्द छन्द
देखि विचार सँभार सदा हरि, 
साधन सैं कछु सीख तरीको । 
काम रु क्रोध तजो विषिया सुख, 
ताहि तैं होइ तु बात खरीको । 
डिम्भ गुमान अज्ञान अरे नर ! 
त्याग करो जु सबै जग फीको ।
आतम अंतर आप पिछानहु, 
उत्तम छंद हरी भज नीको ॥ 
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*सूक्ष्म सौंज अर्चा बंदगी*
*जहँ आत्म तहँ राम है, सकल रह्या भरपूर ।*
*अन्तर्गत ल्यौ लाइ रहु, दादू सेवक सूर ॥२३॥* 
टीका - हे जिज्ञासुओं ! जीवात्मा के हृदय स्थान में ही वह समष्टि चेतन राम है और वही ब्रह्मतत्व सर्वत्र व्यापक है । इसलिये बहिरंग सम्पूर्ण साधनों को त्याग कर स्वस्वरूप में ही लय लगाइये ॥२३॥ 
रज्जब लै मगि लांघिये, पावे लोक अनन्त ।
आतम के अन्तर उठै, कामिनी पावै कंत ॥ 
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*दादू अन्तर्गत ल्यौ लाइ रहु, सदा सुरति सौं गाइ ।*
*यहु मन नाचै मगन ह्वै, भावै ताल बजाइ ॥२४॥* 
टीका - हे जिज्ञासुओं ! इस मन को स्वस्वरूप में लगाकर, ब्रह्म अनुसरणी वृत्ति द्वारा, परमेश्वर का गुणानुवाद गाइये । तब फिर यह मन श्रद्धा विश्वासरूपी ताल बजा कर आत्मा का चिंतन कर - करके नृत्य करे अर्थात् परम प्रफुल्लित होकर सहज स्वरूप में ही मस्त हो जाय ॥२४॥ 
रज्जब लाहा में लाभ ल्यौ, टूटै टोटा हानि । 
सावधान साधे रहो, रे जीव जीवन जानि ॥ 
(क्रमशः)

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