गुरुवार, 24 जनवरी 2013

= निष्कर्म पतिव्रता का अंग =(८/७-९)

॥दादूराम सत्यराम॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= निष्कर्म पतिव्रता का अंग ८ =*
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*तुम्हीं आमची पूजा, तुम्हीं आमची पाती ।*
*तुम्हीं आमचा तीर्थ, तुम्हीं आमची जाती ॥७॥* 
टीका - हे गोविन्द ! तुम्हीं हमारे पूजा रूप हो और तुम्हीं पूजा करने वाले हो । आप ही तुलसी जल रूप हों, हमारे तुलसी पत्र रूप आप ही हो । आप ही हमारे तीर्थरूप हो और आप ही हमारे तीर्थ में यात्री रूप हो ॥७॥ 
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*तुम्हीं आमचा नाद, तुम्हीं आमचा भेद ।*
*तुम्हीं आमचा पुराण, तुम्हीं आमचा वेद ॥८॥* 
टीका - हे गोविन्द ! हे गुसांई ! आप ही हमारे शब्दरूप हो और आप ही हमारे सब कुछ जानने वाले भेदस्वरूप हो । आप ही हमारे पुराण रूप हो और आप ही हमारे वेद और वेद का ज्ञानरूप हो ॥८॥ 
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*तुम्हीं आमची युक्ति, तुम्हीं आमचा योग ।*
*तुम्हीं आमचा वैराग्य, तुम्हीं आमचा भोग ॥९॥* 
टीका - आप ही हमारे शास्त्रों की युक्तिरूप हो और आप ही हमारे हठयोग रूप हो । आप ही हमारे वैराग्यरूप हो, आप ही के लिए हमने वैराग्य लिया है । आप ही हमारे अनेक भोगरूप हो और आप ही भोक्तारूप हो ॥९॥ 
(क्रमशः)

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