सोमवार, 25 मार्च 2013

= माया का अंग १२ =(१००/१०२)


॥दादूराम सत्यराम॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= माया का अंग १२ =*
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*चार पदार्थ मुक्ति बापुरी, अठ सिधि नव निधि चेरी ।*
*माया दासी ताके आगे, जहँ भक्ति निरंजन तेरी ॥१००॥*
टीका - ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव कहते हैं कि हे हमारे स्वामी निरंजनदेव ! जहाँ आपकी भक्ति कहिए आराधना करते हैं, वहाँ पर धर्म - अर्थ - काम - मोक्ष, अष्ट सिद्धि, नव निद्धि और माया की जितनी भी सिद्धियां हैं, सो सब दासी होकर ब्रह्मनिष्ठ संतों की सेवा करती हैं । इसलिए हे प्रभु, दया करके हमें आपकी निर्वासनिक भक्ति दीजिए ॥१००॥ 
‘रज्जब’ बेटी राम की, भक्ति सु सेवा अंग । 
रिधि सिधि निधि लौंडी सबै, आवत तिनके संग ॥ 
‘रज्जब’ बेटी बंदगी, जाई सिरजनहार । 
ता जीव कूँ सो दीजिये, रिधि सिधि बांदी लार ॥ 
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*दादू कहै, माया चेरी साधुहि सेवै ।* 
*साधुन कबहूँ आदर देवै ॥*
*ज्यों आवै, त्यों जाइ बिचारी ।* 
*विलसी, वितड़ी, न माथै मारी ॥१०१॥*
टीका - हे जिज्ञासुओं ! परमेश्‍वर के अनन्य भक्तों के पास में जैसे यह माया आती है, वैसे ही विचार - पूर्वक परोपकार में जाती है, अथवा उनको मोहित करने आती है तो, वैसे ही विचारी, अनादर भाव को प्राप्त होकर निराश ही चली जाती है, क्योंकि वैराग्यवान् पुरुषों ने इस माया को न तो भोगा और न शिष्य सेवकों को ही बांटी है, न मारी कहिए, इसको न संग्रह की है ॥१०१॥ 
‘कबीर’ माया दासी संत की, ऊभी देइ असीस ।
विलसी अरु लातां छड़ी, सुमिर - सुमिर जगदीस ॥ 
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*दादू माया सब गहले किये, चौरासी लख जीव ।*
*ताका चेरी क्या करै, जे रंग राते पीव ॥१०२॥*
टीका - हे जिज्ञासुओं ! इस राम की माया ने सब बहिर्मुख संसारीजनों को मोहित करके विषय - वासना में पागल बना रखा है और वे मायावी जीव चौरासी लाख योनियों में भ्रमते रहते हैं । परन्तु जो विवेकी, विचारवान् ब्रह्मनिष्ठ सच्चे संत हैं, प्रभु भक्ति में रत्त हैं, उनका यह माया कुछ भी बिगाड़ नहीं कर सकती । उनकी तो सेविका ही बनी रहती है ॥१०२॥ 
(क्रमशः)

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