शनिवार, 18 मई 2013

= साधु का अंग १५ =(१५/१७)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= साधु का अंग १५ =*
*दादू नेड़ा परम पद, कर साधु का संग ।*
*दादू सहजैं पाइये, तन मन लागै रंग ॥१५॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! सच्चे ब्रह्मनिष्ठ संतों की संगति से, जब तन - मन ज्ञान - भक्ति - वैराग्य में रत्त होता है, तब मोक्ष पद ‘नेड़ा’, कहिये नजदीक, इस मनुष्य शरीर में ही प्राप्त हो जाता है ॥१५॥ 
*दादू नेड़ा परम पद, साधु संगति होइ ।* 
*दादू सहजैं पाइये, साबित सन्मुख सोइ ॥१६॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! यदि सच्चे संतों की संगति प्राप्त होवे और मुमुक्षु अपने तन मन को ‘साबित’ कहिये विषयों से मुक्त करके, उनके सन्मुख रहे तो मोक्ष पद अत्यन्त समीप ही है । अर्थात् उनके उपदेश को सम्पादन करके साधक स्वस्वरूप साक्षात्कार कर लेता है ॥१६॥ 
*दादू नेड़ा परम पद, साधु जन के साथ ।*
*दादू सहजैं पाइये, परम पदार्थ हाथ ॥१७॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! सच्चे संतों की संगति द्वारा जब अन्तःकरण भक्ति ज्ञान में रंग जावे, तब तो ब्रह्मरूप परम पद ‘नेड़ा’= समीप प्रत्यक्ष ही है । इस प्रकार आत्मा में निश्‍चय करिए ॥१७॥ 
(क्रमशः)

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