शनिवार, 18 मई 2013

= साधु का अंग १५ =(१८/२०)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= साधु का अंग १५ =*
*साधु मिलै तब ऊपजै, हिरदै हरि का भाव ।*
*दादू संगति साधु की, जब हरि करै पसाव ॥१८॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जब प्रभु दया करैं, तब सच्चे संत प्राप्त होते हैं, उनके सत्संग से अन्तःकरण में परमेश्‍वर को प्राप्त करने का भाव जागृत होता है ॥१८॥ 
*साधु मिलै तब ऊपजै, हिरदै हरि का हेत ।* 
*दादू संगति साधु की, कृपा करै तब देत ॥१९॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! सच्चे संत की प्राप्ती से ही हृदय में परमेश्‍वर की प्राप्ती का भाव जागृत होता है । परन्तु जिन जीवों को अपनी शरण में लेना है, उन जीवों को संतों की संगति, वह हरि ही कृपा करके देते हैं, तब प्राप्त होती है ॥१९॥ 
*साधु मिलै तब ऊपजै, प्रेम भक्ति रुचि होइ ।* 
*दादू संगति साधु की, दया कर देवै सोइ ॥२०॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जब परमेश्‍वर के प्यारे सच्चे संत मिलें, तब प्रेमा भक्ति में रुचि कहिए, इच्छा उत्पन्न होती है । परन्तु ऐसे संतों की संगति, स्वयं परमेश्‍वर दया करके देवें, तभी प्राप्त होती है, अन्यथा नहीं ॥२०॥ 
(क्रमशः)

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