शुक्रवार, 17 मई 2013

= साधु का अंग १५ =(१२/१४)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= साधु का अंग १५ =*
*साधु बरसैं राम रस, अमृत वाणी आइ ।*
*दादू दर्शन देखतां, त्रिविध ताप तन जाइ ॥१२॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष अपनी वाणी द्वारा राम - रस रूप अमृत की वर्षा करते हैं । वहाँ साधक पुरुष अमृत को पान करके अमरभाव को प्राप्त हो जाते हैं । ऐसे मुक्त - पुरुषों के दर्शन करने से तन की तीनों ताप नष्ट हो जाती हैं ॥१२॥
श्‍लोक 
आधि व्याधि शरीराणां, कफः वायुः ज्वरस्तथा । 
काम - क्रोध - मदं - मोहं, अध्यात्म पाप उच्यते ॥ 
सर्प - व्याघ्र - तस्कराणां, यक्ष - भूत - पिशाचिका । 
अग्नि - भयं शस्त्र - भयं, अधिभूतास्ते उच्यते ॥ 
शीत उष्मश्च वृष्टिश्‍च, विद्युत्पातो यथा भयम् । 
देवगन्धर्व - नामानां, अधिदैवस्तापोच्यते ॥ 
साखी 
हित चित करके बैठिये, संग न तजिये मूर । 
‘बाजिंद’ साध के दरस तैं, पाप ताप ह्वैं दूर ॥ 
श्रवण सुनत सीतल सुखी, दरस देखि दुख जाइ । 
‘जगन्नाथ’ साधू मिलै, जीव की जलनि बुझाइ ॥ 
*साधु संग महिमा महात्म* 
*संसार विचारा जात है, बहिया लहर तरंग ।* 
*भेरे बैठा ऊबरे, सत साधु के संग ॥१३॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! अज्ञानी संसार के प्राणी विचारे विषय - वासनाओं के प्रवाह में जन्म - मरण रूप में बहते जा रहे हैं । कोई उत्तम साधक ही, मुक्त - पुरुषों के सत्संग रूप जहाज में बैठकर संसार - समुद्र से पार होते हैं अर्थात् देह अध्यास से मुक्त हो जाते हैं ॥१३॥ 
सन्त सिन्धु भव पोत हैं, क्रिया कथा विचार । 
‘जगन्नाथ’ जन जुगति सौं, परसत पैली पार ॥
*दादू नेड़ा परम पद, साधु संगति मांहि ।* 
*दादू सहजैं पाइये, कबहुँ निष्फल नांहि ॥१४॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! परम पद, कहिये मोक्ष पद सच्चे संतों की संगति में प्राप्त होता है । सतगुरु महाराज कहते हैं कि स्वभाव से ही वह ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष, साधकों को इस मनुष्य देह में ही ब्रह्मी अवस्था को प्राप्त करा देते हैं ॥१४॥ 
(क्रमशः)

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