सोमवार, 20 मई 2013

= साधु का अंग १५ =(२७/२९)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= साधु का अंग १५ =*
*दादू मुख दिखलाइ साधु का, जे तुमहिं मिलावै आइ ।*
*तुम मांही अन्तर करै, दई न दिखाइ ताहि ॥२७॥* 
टीका ~ हे देव ! हे परमेश्‍वर ! जो मानव संसारी वार्ता कह कर, आपकी भक्ति में अन्तराय करावे, उनका आपके भक्तों को मुख भी नहीं बताना और जो दयालु संत, आपके साक्षात्कार का उपदेश करते हैं, उनहीं ब्रह्मवेत्ता संतों का हमको दर्शन और सत्संग दीजिये ॥२७॥ 
*जब दरवो तब दीजिये, तुम पै मांगूं येहु ।* 
*दिन प्रति दर्शन साधु का, प्रेम भक्ति दृढ़ देहु ॥२८॥* 
टीका ~ हे परमेश्‍वर ! जो आप हम पर कृपा करो तो, ऐसी करो कि सदैव आपकी प्रेमाभक्ति और सच्चे संतों के दर्शन में हमारी प्रगाढ श्रद्धा और एक रस प्रीति बनी रहे । यही आपसे मांगते हैं ॥२८॥ 
यदृच्छया न गृह्णन्ति मम नामानि चार्जुन ! 
अदृश्यास्ते जनाः पार्थ ! दृष्टिमात्रेण वर्जयेत् ॥ 
केशव ! कृपा कीजिये, जन कबीर पर ईस । 
संगति सांचे साधकी, दीजे बिसवा बीस ॥ 
*साधु सपीड़ा मन करै, सतगुरु शब्द सुनाइ ।* 
*मीरां मेरा मिहर कर, अन्तर विरह उपाइ ॥२९॥* 
टीका ~ हे प्रभो ! आपके सच्चे सन्त - महात्मा सतगुरु का ज्ञान सहित शब्द सुनाकर और “तत्त्वमसि, सोऽहं” इत्यादिक परम उपदेश श्रवण कराकर, जिज्ञासुजनों के अन्तःकरण में जिज्ञासा - वृत्ति दर्द सहित उत्पन्न करते हैं और मुमुक्षु को पक्का कर देते हैं । ऐसे संत अत्यन्त दयालु हैं ॥२९॥ 
(क्रमशः)

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