रविवार, 19 मई 2013

= साधु का अंग १५ =(२४/२६)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
.
*= साधु का अंग १५ =*
*प्रेम कथा हरि की कहै, करै भक्ति ल्यौ लाइ ।*
*पीवै पिलावै राम रस, सो जन मिलियो आइ ॥२४॥* 
टीका ~ हे परमेश्‍वर ! हे हरि ! आपकी प्रेम भरी कथा नित्य प्रति कहें, स्वयं राम - रस को पीवें और जिज्ञासुओं को पिलावें । इस प्रकार आपकी भक्ति में लय होकर रत्त रहने वाले संतों को ही हमको आप मिलाओ, आपसे यही मांगते हैं ॥२४॥ 
कहै कबीर हरि वीनती, सांची संगति देहि । 
जान बूझ साचहि तजै, करै झूठ सूं नेह ॥ 
झूंठ न कबहूँ आदरै, बनवासी जिमि गेह । 
ताकी संगति रामजी, सुपने हु जनि देह ॥ 
*दादू पीवै पिलावै राम रस, प्रेम भक्ति गुण गाइ ।* 
*नित प्रति कथा हरि की करै, हेत सहित ल्यौ लाइ ॥२५॥* 
टीका ~ हे प्रभु ! आपके सच्चे संत अनन्य भक्ति रूपी अमृत को आप तो पीते ही हैं और जिज्ञासुओं को भी पिलाते हैं । ऐसे आप के प्यारे संत ही हमको आकर मिलें और फिऱ आपकी प्रतिदिन कथा अन्तःकरण के हित के सहित कहने वाले संतों की संगति से ही हम कल्याण को प्राप्त होंगे । ऐसे संतों से ही आप हमें मिलावें ॥२५॥ 
*आन कथा संसार की, हमहिं सुणावै आइ ।* 
*तिसका मुख दादू कहै, दई न दिखाइ ताहि ॥२६॥* 
टीका ~ हे देव ! हे हरि ! आपकी कथा अमृत को त्याग कर ‘आन कथा’ कहिए - देवी - देवताओं की, सकाम कर्मों की, या दुनियावी वार्ता सुनाने वाले पुरुषों को, हमें दर्शन भी नहीं कराना, क्योंकि वे आपकी प्रेमाभक्ति में अन्तर डालने वाले हैं ॥२६॥ 
दीपक पवन, दूध पर कांजी, 
कंचन सीसै, अगनि कपास । 
परचै केलि कमध कामिनी पट, 
कथा भजन खल बात विनास ॥ 
सोरठा - 
कबीर तास मिलाइ, जास हियाली तूं बसै । 
नातर बेगि उठाइ, नित का गंजन को सहै ॥ 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें