गुरुवार, 4 जुलाई 2013

= विचार का अंग १८ =(११/१२)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*विचार का अंग १८*
*दादू गुण निर्गुण मन मिल रह्या, क्यों बेगर ह्वै जाहि ।*
*जहँ मन नांही सो नहीं, जहँ मन चेतन सो आहि ॥११॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! गुण निर्गुण कहिए, माया विशिष्ट ब्रह्म, विषयासक्त मन से ‘‘बेगर’’ कहिये, अलग क्यों विचार किया जावे । जिस वस्तु में मन नहीं है, वह वस्तु उस मन के लिये नहीं के समान है और जिस वस्तु में मन है, वह वस्तु उस मन के लिये स्वरूप से है । अतः वैराग्य - पूर्वक विचार द्वारा मन को परमात्मा में लगाने से मन चैतन्य रूप हो जाता है ॥११॥
विषयन माहिं चित्त मिल रह्यो । 
अरु विषयन चित्त हि दृढ़ गह्यो ॥ 
हे पुत्रो ! यह योंही सत्य । 
परतें आतम माहिं असत्य ॥
विषय चित्त ये दोऊ माया । 
आतम ब्रह्म निरंजन राया ॥ 
विषयन सों जब चित्त लगावै । 
तब ही चित्त तिनतैं सुख पावै ।
- एकादश स्कन्ध (भागवत)
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*विचार*
*दादू सबही व्याधि की, औषधि एक विचार ।*
*समझे तैं सुख पाइये, कोइ कुछ कहो गँवार ॥१२॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! अध्यात्म, आधिदैविक, आधिभौतिक, जन्म और मरण, इन सब ही दुःखों की निवृत्ति का साधन एक ब्रह्म विचार ही है । जब ब्रह्म तत्त्व को महावाक्यों के विचार द्वारा निश्‍चय करने से परमानन्द की प्राप्ति होती है । फिर ‘गँवार’ कहिए, विषय में आसक्त, बहिर्मुख, अज्ञानी जीवन - मुक्त पुरुषों के लिये चाहे कुछ भी कहते रहो ॥१२॥
संसार - दीर्घ - रोगस्य स्वविचारमटौषधम् । 
कोऽहं, कस्य च संसारो ? विवेकेन विलीयते ॥
(क्रमशः)

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