शनिवार, 12 अक्टूबर 2013

= जीवित मृतक का अंग २३ =(१७/१८)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
.
*जीवित मृतक का अंग २३*
*मेरे आगे मैं खड़ा, ता तैं रह्या लुकाइ ।*
*दादू प्रकट पीव है, जे यहु आपा जाइ ॥१७॥*
टीका ~ परम गुरु कहते हैं कि जिज्ञासु का अहंभाव विलीन होने पर फिर ब्रह्मभाव ही शेष रहता है । परन्तु इस मिथ्या अहंकार की निवृत्ति, गुरु द्वारा ज्ञान होने से ही, ऐसा साक्षात्कार होता है ॥१७॥
.
*सूक्ष्म - मार्ग*
*दादू जीवित मृतक होइ कर, मारग मांही आव ।*
*पहली शीश उतार कर, पीछे धरिये पांव ॥१८॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जीवित काल में ही आपा अभिमान से रहित होकर आत्म - मार्ग में कहिये साधनों में चलो । प्रथम मिथ्या अहंकार रूपी मन का शीश उतार कर, पीछे ज्ञान भक्ति द्वारा आत्मस्वरूप का निश्‍चय करिये ॥१८॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें