शनिवार, 12 अक्टूबर 2013

= च. त./१३-१४ =


*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“चतुर्थ - तरंग” १३-१४)* 
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**हद छाड़ बेहद में प्रवेश** 
**मनोहर छन्द** 
जाति वर्ण कुलाश्रम, वेद लोक पक्षपात,
हिन्दुन की हद छाड़ि, चलत बेहद लों । 
जाति पांति किये चूर, भ्रम की उडाई धूर,
सब तें रहत दूर, मार्य मन - मद लों । 
ज्ञान की खड्ग धार, भ्रम भेद परिहार,
निशंक बजायो तूर, शूरवीर सद लों । 
स्वामीजी दिपत पुर, काहू की न शंक उर,
राम नाम गाय गुण, रैन दिन पद लों ॥१३॥ 
यह फकीर न तो जाति वर्ण व्यवस्था मानता है, न कुल और आश्रमों की मर्यादा । वेद शास्त्रों का भी पक्षपात नहीं करता । यह तो हिन्दुओं की भी हद छोड़कर बेहद चल रहा है । हिन्दु धर्म पूजा पद्धति से भी भिन्न पंथ चला रहा है । जाति - पाँति व्यवस्था सब चकनाचूर कर दी, सारे धर्म - कर्म की धूर उड़ा दी । सबसे दूर रहता है, अपने मन का मद भी इसने मार लिया है । ज्ञान की खडग् लिये सब भ्रम भेदों का परिहार करता रहता है । नि:शंक होकर अपना सिद्धान्त - तूर बजाता रहता है । शूरवीर की तरह सन्नद्ध होकर अपने सिद्धान्त पर डट रहा है । इस तरह सिकदार श्री दादूजी की निन्दा करता रहता, और स्वामीजी नि:शंक होकर अपना ज्ञान - प्रकाश फैलाते रहते । अहर्निश राम नाम जपते हुये अपने स्थान पर ध्यान लगाते रहते ॥१३॥ 
**केवल भक्ति अखंडाकार में रमण**
योगी हु न जंगम जैन, बौद्ध न सन्यासी सेन,
सब कोऊ भेष पख उनतें विरक्त हैं । 
देवी है न देव कोई, पूजा है न पाती सोई,
तीर्थ व्रत सब तजि, राम नाम रत्त हैं । 
एक ही अखंड जाप, हरत विषम ताप,
ब्रह्म की मूरति आप, सतत जपत हैं । 
भगति विराग ज्ञान, देत उपदेश ध्यान,
अव्यय अनादि पंथ, दादूजी रमत हैं ॥१४॥ 
जोगी वैरागी, जंगम जैन, बौद्ध सन्यासी, सयाने भोपे, किसी का सिद्धान्त या पूजा पद्धति नहीं अपनायी । सभी भेष पक्षपातों से दूर विरक्त रहते हैं । देवी - देवताओं की पूजापद्धति, तीर्थव्रत सब कुछ छोड़कर केवल रामनाम में रत रहते हैं । एक अखंड जाप से, सब विषम तापों को हरते हुये साक्षात् ब्रह्ममूर्ति बन गये हैं । भक्ति वैराग्य ज्ञान का उपदेश देते और अव्यय अनादि ब्रह्म में ध्यान लगाते हुये आनन्द मग्न रहते हैं ॥१४॥ 
(क्रमशः)

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