॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*जीवित मृतक का अंग २३*
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*दादू आप छिपाइये, जहॉं न देखै कोइ ।*
*पीव को देख दिखाइये, त्यों त्यों आनन्द होइ ॥२५॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! इस मिथ्या अहंकार को वहॉं छिपाना, जहॉं अन्तःकरण में कोई भी गुण - विकार नहीं व्यापते हैं । वहॉं पर अहंकार को ऐसा त्यागो, अन्तर्मुख वृत्ति से, कि फिर कोई देख न सके और ‘‘सोहं, सोहं’’ में अखंड वृत्ति लगाइये । इस प्रकार पीव कहिए, मुखप्रीति का विषय परमेश्वर का, प्रकट दर्शन करके साधक पुरुषों को उपदेश करिये ॥२५॥
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*आपा निर्दोष*
*दादू अंतरगति आपा नहीं, मुख सौं मैं तैं होइ ।*
दादू दोष न दीजिये, यों मिल खेलैं दोइ ॥२६॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! अंतर्गति कहिये अन्तःकरण में, जिनके अनात्म अहंकार नहीं है, वह शरीर के किए ‘मैं - तूं’ के व्यवहार को देखकर उनमें आपा नहीं समझना, क्योंकि अन्तःकरण की वृत्ति में ‘आपा’ नहीं चाहिये । अर्थात् परमेश्वर की प्रेमाभक्ति के करने वाले भक्तों के हृदय में, विरहरूप अग्नि से, उनका अहंकार जल जाता है । परन्तु प्रेमाभक्ति का आनन्द पाने के लिये ‘मैं - तूं’ कहिए सेवक - सेव्य रूप भाव केवल कहने मात्र को रहता है । वास्तव में वे, आपा से मुक्त हैं ॥२६॥
(क्रमशः)
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