*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“चतुर्थ - तरंग” २२-२३)*
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**चीरी के अंक पलटे सिकदार चरणों में गिरा**
छींत गह्यो कर, बांचि उजागर,
पीर सभी सिकदार सुनीजे ।
जो नर संत करे नहीं दर्शन,
सो शत पंच हु दण्ड भरीजे ॥
यों करि छींत के अंक फिरै सब,
बांचत ही मन में पछितीजे ।
बेगि चल्यो, गहि पाँव पर्यो शठ,
मोर गुनाह जु माफ करीजे ॥२२॥
सेवकों ने कहा - उस छींत में लिखा हुआ सबके सामने पढा जाय । तब पीर काजी मुल्ला सबके सामने छींत पढी गई । सभी लोगों ने सुना - जो कोई संतश्री दादू के दर्शन करने नहीं जावेगा, उसे ५००/ - रुपये दण्ड के भरने पड़ेगे । श्री दादूजी की सिद्धि के इस तरह उस आदेश के अक्षर ही पलट गये । पढ़ सुनकर सब स्तब्ध रह गये, पछिताने लगे । दौड़कर स्वामीजी के चरणों में गिर गये, और अपने गुनाहों के लिये क्षमा मांगने लगे ॥२२॥
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**सिकदार सहित सब दादू के चरणों में गिरे**
दादु कही - अब नांहि डरो तुम,
जीव दया करि भक्ति करीजे ।
स्वामि जु हाथ धर्यो सिर ऊपर,
छाड़ि कुरान, हरि रस पीजे ॥
जा दिन भयो पुर सांभर,
छींत फिरी जु भले जश लीजे ।
संत हिं सेव लग्यो सिकदार जु,
लोग सभी पुर राम भजीजे ॥२३॥
स्वामी जी ने कहा - अब तुम मत डरो । जीवों पर दया करो, और प्रभु भक्ति करो । स्वामीजी ने सिकदार के सिर पर हाथ रखा । वह कुरान पद्धति छोड़कर उनका शिष्य बन गया, और हरि - उपासना करने लगा । उस दिन से सांभर शहर में श्री दादूजी की यश प्रतिष्ठा और बढ गई । अक्षर पलटने से सिकदार सहित सभी उनके भक्त बन गये, सेवा करने लगे, राम नाम जपने लगे ॥२३॥
(क्रमशः)
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