बुधवार, 16 अक्टूबर 2013

= च. त./२२-२३ =


*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“चतुर्थ - तरंग” २२-२३)* 
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**चीरी के अंक पलटे सिकदार चरणों में गिरा** 
छींत गह्यो कर, बांचि उजागर, 
पीर सभी सिकदार सुनीजे । 
जो नर संत करे नहीं दर्शन, 
सो शत पंच हु दण्ड भरीजे ॥ 
यों करि छींत के अंक फिरै सब, 
बांचत ही मन में पछितीजे । 
बेगि चल्यो, गहि पाँव पर्यो शठ, 
मोर गुनाह जु माफ करीजे ॥२२॥
सेवकों ने कहा - उस छींत में लिखा हुआ सबके सामने पढा जाय । तब पीर काजी मुल्ला सबके सामने छींत पढी गई । सभी लोगों ने सुना - जो कोई संतश्री दादू के दर्शन करने नहीं जावेगा, उसे ५००/ - रुपये दण्ड के भरने पड़ेगे । श्री दादूजी की सिद्धि के इस तरह उस आदेश के अक्षर ही पलट गये । पढ़ सुनकर सब स्तब्ध रह गये, पछिताने लगे । दौड़कर स्वामीजी के चरणों में गिर गये, और अपने गुनाहों के लिये क्षमा मांगने लगे ॥२२॥ 
**सिकदार सहित सब दादू के चरणों में गिरे** 
दादु कही - अब नांहि डरो तुम, 
जीव दया करि भक्ति करीजे । 
स्वामि जु हाथ धर्यो सिर ऊपर, 
छाड़ि कुरान, हरि रस पीजे ॥ 
जा दिन भयो पुर सांभर, 
छींत फिरी जु भले जश लीजे । 
संत हिं सेव लग्यो सिकदार जु, 
लोग सभी पुर राम भजीजे ॥२३॥ 
स्वामी जी ने कहा - अब तुम मत डरो । जीवों पर दया करो, और प्रभु भक्ति करो । स्वामीजी ने सिकदार के सिर पर हाथ रखा । वह कुरान पद्धति छोड़कर उनका शिष्य बन गया, और हरि - उपासना करने लगा । उस दिन से सांभर शहर में श्री दादूजी की यश प्रतिष्ठा और बढ गई । अक्षर पलटने से सिकदार सहित सभी उनके भक्त बन गये, सेवा करने लगे, राम नाम जपने लगे ॥२३॥ 
(क्रमशः)

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