गुरुवार, 17 अक्टूबर 2013

= जीवित मृतक का अंग २३ =(२७/२८)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*जीवित मृतक का अंग २३*
*जे जन आपा मेट कर, रहैं राम ल्यौ लाइ ।*
*दादू सब ही देखतां, साहिब सौं मिल जाइ ॥२७॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जो उत्तम पुरुष मायावी आपा को त्याग कर निर्गुण राम के स्मरण में अन्तर्मुख वृत्ति से लय लगाकर रहता है, वह ‘देखतां’ कहिए, निर्गुण राम का स्मरण करता - करता, निर्गुण ब्रह्मरूप हो जाता है ॥२७॥
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*दीनता गरीबी*
*गरीब गरीबी गह रह्या, मसकीनी मसकीन ।*
*दादू आपा मेट करि, होइ रह्या लै लीन ॥२८॥*
टीका ~ ब्रह्मऋषि दादूदयाल महाराज से संत और भक्तों ने, जब दोनों शिष्यों के अन्दर गुणों की विशेषता देखकर प्रार्थना की कि इनका नामकरण रखिये, तब परम गुरुदेव ने इस साखी से सबको संकेत किया, अर्थात् बतलाया कि मस्कीनी नाम दीनता गरीबी का है । ये दोनों गरीबों की सेवा करने वाले होने से, जन समुदाय से प्यार करते हैं । इसलिये इनका नाम गरीबदास और मस्कीनदास है । ये अपने अनात्म अहंकार को मेटकर जन - समुदाय की सेवा में लीन रहेंगे ॥२८॥
(क्रमशः)

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