बुधवार, 30 अक्टूबर 2013

= ४३ =


#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
१३९. विरह विनती ।
मन वैरागी राम को, संगि रहै सुख होइ हो ॥टेक॥
हरि कारण मन जोगिया, क्योंहि मिलै मुझ सोइ ।
निरखण का मोहि चाव है, क्यों आप दिखावै मोहि हो ॥१॥
हिरदै में हरि आव तूँ, मुख देखूं मन धोहि ।
तन मन में तूँ ही बसै, दया न आवै तोहि हो ॥२॥
निरखण का मोहि चाव है, ये दुख मेरा खोइ ।
दादू तुम्हारा दास है, नैन देखन को रोइ हो ॥३॥
          

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