गुरुवार, 31 अक्टूबर 2013

= शूरातन का अंग २४ =(५/६)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*शूरातन का अंग २४*
*शूरवीर कायर*
*दादू हम काइर कड़बा कर रहे, शूर निराला होइ ।*
*निकस खड़ा मैदान में, ता सम और न कोइ ॥५॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! देह अध्यासी कायर संसारीजन शस्त्रों के खुड़के करते रहते हैं, केवल शस्त्र सँवारकर युद्ध - प्रयाण का दिखावा करते हैं एवं झूंठी शेखी बघारते हो - हल्ला ही करते हैं, अर्थात् मन इन्द्रियों के विषयों में और व्यावहारिक कुटुम्ब के अध्यास में फँसे हुए भी शास्त्रीय वचनों के आधार से बड़बोले बनकर त्याग वैराग्य का बाह्याडम्बर करते हैं और सच्चे शूरवीर संतजन, निष्काम, असंग रहकर, अहंकार से मुक्त हुए, स्वस्वरूप प्राप्ति के लिये महावाक्यों की साधना में तत्पर रहते हैं । उनकी समता और कौन कर सकता है ॥५॥
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*शूर सती साधु निर्णय*
*मड़ा न जीवै तो संग जलै, जीवै तो घर आण ।*
*जीवन मरणा राम सौं, सोई सती करि जाण ॥६॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! सती स्त्री का मृतक पति, यदि न जीवै, तो वह उसके साथ ही जल जाती है और पति जीवित रहे, तो घर ले आती है । इसी प्रकार परमेश्‍वर रूप पति के निमित्त ही, शूरवीर संतों का जीना और मरना सार्थक है ॥६॥
तिय को पति धर पिंजरे, जात कांगरू देश । 
जे जीवों तो आइ घर, नहिं तो अग्नि प्रवेश ॥
दृष्टान्त ~ एक पुरुष ने अपनी स्त्री को तोती रूप बना कर पिंजरे में रखा और आप बोला कि मैं कामरूप देश में मंत्रसिद्धि प्राप्त करने जाता हूँ । अगर जीकर घर आ जाऊं, तो तुम्हें स्त्री रूप बना लूंगा, नहीं तो तुम मेरे वियोग में अग्नि में प्रवेश कर जाना ।
(क्रमशः)

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