सोमवार, 28 अक्टूबर 2013

= ३८ =


#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
दादू बुरा न बांछै जीव का, सदा सजीवन सोइ । 
परलै विषय विकार सब, भाव भक्ति रत होइ ॥ 
सतगुरु संतों की यह रीत, आत्म भाव सौं राखैं प्रीत । 
ना को बैरी ना को मीत, दादू राम मिलन की चीत ॥ 
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साभार : Pradyumn Singh Chouhan ~ 
"हृदय से बहती करुणा चरणों की ओर : अध्यात्मिक अनुभूति" 

("कम्पैशन आफ हार्ट इज फ्लोइंग टू फुट : स्पिरिचुअल काग्निशन") .............लेखन -प्रद्युम्न सिंह चौहान 
कई बार मुझे फर्श पर या रास्ते में अपने पैरो या कहे चरणों के पास उन जीवों के लिए अपने हृदय मे, हृदय की करुणा या दया का अनुभव होता रहता है यानि यह "हार्ट टू फुट" अनुभव होता है । क्योकि पैरों के पास कोई जीव जैसे चींटी, कीट होता है या मरणावस्था में पड़ा कोई जीव जंतु या सामान्य चलता फिरता कोई जीव, इन सबके प्रति हृदय में दया के भाव आना फिर, कभी कभी यह अश्रु धारा(यानि करुणा से आंसुओ का आना ) में बदल जाती है । 
फिर उस विराट परमात्मा के लिए कभी कभी भावशून्यता भी आ जाती है क्कियों आत्मा इस तरह के अनुभव करती है । मैं जानता हूँ कि चींटी, कीट नश्वर है लेकिन उनमें बैठा ईश्वर नश्वर नहीं है । यही अध्यात्म का सही अनुभव है, जब हम हमारी आत्मा किसी जीव की आत्मा के दुःख का अनुभव, उसके जीवन संघर्ष का अनुभव, उसकी करुणामय स्तिथि का अनुभव करे । 
चींटी, कीट, छोटे जीव जन्तुओं को देखकर उस परमात्मा के प्रति मन भाव विभोर हो जाता है कई बार, लेकिन इन जीवो में जीवन का सृजन करने वाला परमात्मा ही सर्वशक्तिमान है । चाहे रात्रि में ट्यूबलाईट में कीट पतंगों के झुण्ड हो, खेतों की दरारों से निकली चीटियों की लाइन हो, कीट, चींटे हो या मिटटी में छिपे छोटे जीव हो सभी चेतनशील हैं आत्मा लिए घुमने वाले शरीर है । 
वास्तविकता में ईश्वर को उस चेतनाशक्ति जिसे आत्मा कहते है उसी से समझा जा सकता है लेकिन जड़ पदार्थों यानि मूर्तियों, वस्तुओं में उस ईश्वर को ढूंढा जाता है और समझने की कोशिश की जाती है । वैसे ईश्वर हर जगह है लेकिन उसे आत्मा से ही समझा जा सकता है और सिर्फ आत्मा और ईश्वर ही चेतन है । 
सभी जीव व कीट पतंगे उस परमात्मा की जन्म कर्म सम्बन्धी न्यायिक व्यवस्था के प्रतिनिधि हैं । कई बार राह चलते हुए कदम आगे बढाता हूँ लेकिन पैर का कदम जब रखें ही वाला होता हूँ और कोई जीव दिखाई दे जाता है तो कदम एडी के बल वहीं रुक जाता है, आत्मा तुरंत ही इसी स्तिथि में उस जीव पर कदम ना रखने का कह देती है और हृदय में करुणा के भावों को लाती है । 
चरणों या कहे पैरो में दया, करुणा जब इन भावों को व्यवहारिक बनाना यानि आत्मा की सुनना और दया को उस जीव पर अर्पित करना अर्थात हृदय के भाव उस जीव तक पहुच जाते हैं और ईश्वर ने जो मानवता के गुण दिए हैं उन गुणों को अपनाने का भाव भी हम में फिर अनुभव होता है । साथ ही जब ऐसा कोई जीव आता है पैरों में जो किसी के पैरों से कुचला गया हो या किसी के पैरों में आ सकता है तो उसे तिनके से या हाथ से एक तरफ करके उसको किसी के पैरों में आने से भी बचा सकते हैं । यह भी हमारे हृदय में बैठी आत्मा के ही करुणा के भाव हैं जो उसे बचाने को कहते हैं । 
किसी जीव के प्रति करुणा, दया, मानवीय दृष्टिकोण जैसे भावों का आना फिर भले ही वह जीव छोटा कीट पतंगा ही क्यों ना हो, यह उस परमात्मा के प्रति श्रद्धा है क्योकि श्रद्धा का मतलब होता है सत्य को जानकर उसे धारण करना, यहाँ पर उस जीव की आत्मा में परमात्मा के अस्तित्व को मानने वाले सत्य को जानकर ही उस जीव के प्रति दया, करुणा के भाव आते हैं यही वास्तविक अध्यात्मिक अनुभूति है । मेरी आत्मा यह अनुभूति कई बार कर चुकी है और करते रहती है, वैसे जीव मात्र में आत्मा की समझ और विकसित करने में प्रयासरत हूँ क्कियों अध्यात्म का मतलब ही होता है आत्मा का अध्ययन । 
जय माँ भारती ...................जय भारत वर्ष -प्रद्युम्न सिंह चौहान

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