#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
खुशी तुम्हारी त्यों करो, हम तो मानी हार ।
भावै बन्दा बख्शिये, भावै गह कर मार ॥
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साभार : Bhadra Dhokai ~
किसी प्रेम को, आस्था को या समर्पण को जानना है, तो मीरा को जानना होगा। मीरा को जानना मोहन को पाने के बराबर है। कारण इसका यह भी है कि एक स्तर पर आकर उनका आपस का भेद ही ख़त्म हो जाता है..
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कृष्ण को जानना हो, तो मीरा को सेतु बनाओ, क्योंकि मीरा के अलावा दूसरा कोई सेतु नहीं जो कृष्ण की थाह पा सके। भक्त हर युग में हुए, मगर मीरा जैसा भक्त किसी युग में दूसरा नहीं हुआ। मीरा की कृष्ण भक्ति के आगे दुनिया की हर भक्ति फीकी दिखाई पड़ती है। मीरा कृष्ण जी की मूर्ति के सामने खड़ी होकर कहती हैं- ‘मैं तो सिर्फ़ इस योग्य हूं कि तुम्हारे गीत गा सकूं। इसके अलावा मुझमें दूसरा कोई गुण नहीं है।
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‘जहां बैठाने तित ही बैठूं, बेचे तो बिक जाऊं।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, बार-बार बलि जाऊं।’
अर्थात- अब तो मेरा जीवन उसी की आज्ञा के जैसा चलता है। जहां बिठा देता है, वहीं बैठ जाती हूं। उठने को कहता है, तो उठ जाती हूं। मेरे तो प्रभु कृष्ण कन्हैया हैं, जिन पर जीवन बलिहारी है। परमात्मा के प्रति मीरा की दीवानगी इस हद तक थी कि उन्हें दुनिया में कृष्ण के अलावा कुछ दिखाई ही नहीं देता था। वह कहती हैं, संतों के संग बैठ बैठ कर वह जो लोक लाज का व्यर्थ आडम्बर था, बोझ था वह सारा मैंने उतार दिया है। संत के संग बैठ कर भी अगर लोग लाज न खोई, तो संत से क्या सीखा?
|| अज्ञात ||
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