शनिवार, 9 नवंबर 2013

= ६१ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
दुनियां के पीछे पड़ा, दौड़ा दौड़ा जाइ |
दादू जिन पैदा किया, ता साहिब को छिटकाइ ||
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! अज्ञानी संसारीजन नाना प्रकार की कामनाओं को दिल में लेकर दुनियां के पीछे - पीछे दौड़ता रहता है | कभी धन के पीछे दौड़ता है, कभी पीर फकीरों के पीछे दौड़ता है और जिस परमेश्‍वर ने जन्म दिया है, उस परमेश्‍वर का विश्‍वास तो छोड़ दिया है | ऐसे विषयी मनुष्यों को सुख और शांति कहाँ प्राप्त हो सकती है ?
---------------------
साभार : Bhakti ~
शहरों, गाँवो, कस्बों और नगरों को रौंदता हुआ सिंकंदर का काफिला आगे बढ़ता जा रहा था। रास्ते में एक गाँव पड़ा। सिकंदर की टुकड़ी ने गाँव की एक बूढ़ी महिला का दरवाजा खटखटाया।
घर में से एक वृद्ध महिला निकली। उसे देख सिकंदर चीखकर बोला- "ऐ बुढ़िया ! मुझे भूख लगी है। मैं विश्वविजयी सिकंदर हूँ। जा जल्दी से मेरे लिए कुछ खाने को ला।" महिला अंदर गई औऱ कुछ देर बाद एक थाली को कपड़े से ढककर लौटी।
सिकंदर ने कपड़ा उठाकर देखा तो उसमें सोने के जेवर रखे थे। सिकंदर चिल्लाया- "अरे बेवकूफ औरत ! मैंने खाने की रोटियाँ माँगी और तू ये जेवर ले आई। इन्हें खाकर मैं अपना पेट भरूँगा क्या?"
बूढ़ी महिला बोली– "बेवकूफ मैं नहीं, तू है सिकंदर ! यदि तेरा पेट रोटियों से भर जाता तो तू अपने देश में ही सुखी नहीं रहता क्या? रोटियाँ तो वहाँ भी बनती होंगी। तेरी भूख जिससे मिटती नजर आती है, मैं वहीं तेरे लिए रखकर लाई हूँ।" सिकंदर के पास कोई जवाब नहीं था। उसने सिर झुका लिया और चुपचाप उस गाँव से प्रस्थान कर गया।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें