गुरुवार, 7 नवंबर 2013

= प. त./१८-९ =



*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“पंचम - तरंग” १८/१९)* 
*जोरदार बारिश भक्त लोग भीगे* 
संत कहे - सब मानुष जावहु, 
आवत मेघ घटा चहुं भाई । 
कहि सिकदार - घटा नहिं दीखत, 
सूर्य तपै नभ आतप छाई । 
आप कही - अब होत विलम्ब जु, 
बादर होत घटा चहुं धाई । 
भीजि मनुष्य चले सब देखत, 
वर्षत मेघ नदी चहुं आई ॥१८॥ 
स्वामीजी ने कहा - अब सब मनुष्य अपने घरों को चले जाओ । बहुत जोर से मेघ - घटा आने वाली है । सिकदार ने कहा - गुरुजी ! घटा तो दूर - दूर तक दिखाई नहीं दे रही, आकाश में तो प्रचण्ड सूर्य तप रहा है । स्वामी जी ने फिर कहा - भाई ! विलम्ब मत करो, बादल घटा दौड़ी चली आ रही है । जन समुदाय मार्ग में ही चल रहा था कि - घनघोर घटा छा गई, तेज वर्षा से भीजते हुये सब मनुष्य नगर में नहीं जा पाये । चारों ओर से नदियाँ बहने लगी ॥१८॥ 
*बहुत पानी चढ़ा सीकदार घबराया* 
देखि खरो सिकदार गुरु ढिग, 
पास पचीस रहे नर सारे । 
आवत नीर लग्यो बंगला मधि, 
जोरत पाणि कही सिकदारे । 
कौन उपाय करें अब तैरण, 
संत कहे - हरि आप उबारे ॥ 
वर्षा बंद भई, नदिया बही, 
नांहि चढ्यो जल ऊपर द्वारे ॥१९॥ 
इस आकस्मिक वर्षा को देखता हुआ सिकदार और लगभग पच्चीस भक्तजन स्वामीजी के समीप ही खड़े थे । वर्षा का पानी भरने लगा, भरते - भरते उस नवीन संत - भवन के द्वार तक आ लगा । तब सिकदार ने हाथ जोड़कर प्रार्थना की - गुरुदेव ! अब इस चतुर्दिक् भरे हुये पानी को तैरकर पार कैसे जावेंगे । स्वामीजी ने कहा - श्री हरि आप ही पार करेंगे । संत प्रार्थना से वर्षा बंद हो गई, नदियाँ बहकर ठहर गई । बाढ का पानी संत भवन के द्वार में नहीं घुसा ॥१९॥ 
(क्रमशः)

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