सोमवार, 18 नवंबर 2013

= ७९ =


#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
दादू काया कारवीं, कदे न चालै संग । 
कोटि वर्ष जे जीवना, तऊ होइला भंग ॥१९॥ 
टीका ~ हे जिज्ञासु ! यह काया रूप स्थूल शरीर कारवी कहिए, अविद्या की रची हुई, चैतन्य रूप प्राणों के साथ, कभी भी संग नहीं चलेगी । चाहे करोड़ वर्ष की आयु होवे, तब भी अन्त में यह नाश को ही प्राप्त होगी ॥१९॥ 
चार पुरुष भाड़ै लई, बनी कोटड़ी चार । 
कहीं भाड़ो हमरो यह, कबहुं देहुं निकार ॥ 
दृष्टान्त ~ चार पुरुषों ने एक कोटड़ी किराये ली । मकान मालिक ने कहा ~ मैं चाहूँगा, तभी खाली करवा लूंगा । एक ने उसमें तमाम घर का जखीरा ला कर भर दिया । दूसरे ने खाने - पकाने का सामान रखा । तीसरे ने केवल अपना बिस्तर ही लाकर रखा । चौथा उसमें खाली लेट लगाकर चला जावे । मकान मालिक ने एक रोज कहा ~ तुम लोगों ने तो अब तक किराया नहीं दिया, इसलिये कोटडी खाली कर दो । 
पहले नम्बर के मनुष्य को बहुत भारी दुःख हुआ । दूसरे को उससे कम दुःख हुआ । तीसरे को दूसरे से कम दुःख हुआ । चौथे को ना बराबर दुःख हुआ, क्योंकि वह कुछ रखता ही नहीं था । इसी प्रकार काल - भगवान से, यह शरीर नाम की कोटडी, पामर, विषयी, जिज्ञासु, मुक्त, इन चारों ने ली । पामर इसमें पूरा अध्यास कर बैठा, विषयी इसमें उससे कम, केवल विषय - सुख का उपभोग करने लगा । जिज्ञासु ने इसमें साधन साधने का ही अध्यास किया । मुक्त को इसमें किसी प्रकार का अध्यास नहीं था । 
काल - भगवान ने सहसा आदेश दिया कि कोटड़ी खाली कर दो । जितना जितना जिसको शरीर में अध्यास रूप ममत्व था, उतना उतना उनको दुःख हुआ । ज्ञानी को किंचित् भी अध्यास नहीं था, सो उसको इसके त्यागने में जरा सा भी दुःख नहीं हुआ । 
(श्री दादूवाणी ~ काल का अंग)

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