मंगलवार, 19 नवंबर 2013

= शूरातन का अंग २४ =(४३/४४)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*शूरातन का अंग २४*
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*अपने सांई कारणै, क्या क्या नहिं कीजे ?* 
*दादू सब आरम्भ तज, अपणा शिर दीजे ॥४३॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! अपने स्वामी परमेश्‍वर की प्राप्ति के लिये, हम सभी शास्त्रोक्त कर्म करें । और सम्पूर्ण सकाम कर्मों का त्याग करके, हम विरही जन, अपना सिर भी देने को तत्पर हैं । अर्थात् सब कल्पना, अहंकार और वासनाओं का त्याग करके, प्रभु की अनन्य शरण ग्रहण करो ॥४३॥ 
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*शिर के साटै लीजिये, साहिब जी का नांव ।* 
*खेलै शीश उतार कर, दादू मैं बलि जांव ॥४४॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! आप अपना आपा अभिमान रूपी मस्तक देकर, परमेश्‍वर के नाम को लेओ । हे साधक ! जो विरहीजन भक्त, अपना अहंकार रूपी सिर उतार कर परमेश्‍वर के अर्पण करते हैं, वे ही परमेश्‍वर से अभेद निश्‍चय रूप खेल खेलते हैं, उनकी हम बलिहारी जाते हैं ॥४४॥
(क्रमशः)

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